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मुनिश्री धनराजजी ने इस अवसर पर आचार्य भिक्षु को कविता - कृति से अभिव्यक्त करते हुए लोगो को अनुशासित रहने की प्रेरणा दी ।
मुनिश्री नगराजजी ने कहा मर्यादा महोत्सव तेरापथ को आचार्य भिक्षु की सहस्रो वर्षो तक अमर रखने वाली देन है । हमारी भावी पीढ़िया इसके माध्यम से स्नेहसूत्र से सर्वालित होकर देश-विदेश मे अध्यात्म की लौ जगाएगी । आज भी सारे भारत मे लगभग ६५० साघुसाध्वियो के लिए तथा लाखो श्रावको के लिए यह दिन बड़े उल्लास का दिन है ।
मुनिश्री नथमलजी ने कहा -- व्यक्ति बुरा है या भला इसकी कसोटी वह स्वय नही है । कुछ आदर्श ऐसे है जो उसके मूल्य का निर्धारण करते है । वे आदर्श हो दूसरे शब्दो मे मर्यादा हैं । अत हमे आचार्य भिक्षु द्वारा सम्मत मर्यादाओ पर चलकर अपने आपको आदर्श का अनुगन्ता बनाना है ।
पजाव के उपमंत्री श्री बनारसीदास ने भी इस अवसर पर लोगों को त्यागी और सयमी बनने की प्रेरणा दा
श्री सम्पतकुमार गधेया, श्री रामचन्द्रजी जैन तथा श्रीमती सतोष ने इस पुनीत अवसर पर अपने विचार प्रकट किए ।
तेरापथी महासभा के अध्यक्ष श्री नेमीचन्दजी गधया ने प्राचार्य श्री भिक्षु की स्तवना करते हुए सभी लोगो को द्विशताब्दी के अवसर पर ज्यादा-से-ज्यादा सहयोग करने का आह्वान किया ।
आचार्यश्री ने इस अवसर पर तीन प्रमुख घोषणाएं की --