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जब भारत से यह अशिक्षा का श्रावरण दूर हो जाएगा ?
खुर्जा मे पहुचे तो एक शिक्षित समाज के सम्पर्क मे आने का अवसर मिला । भोजनोपरान्त संस्कृत पडितो की एक सभा ग्राचार्यश्री के सान्निध्य मे हुई | बहुत सारे संस्कृतज्ञो ने उसमे भाग लिया । मुनिश्री नथमलजी ने 'जैन- दर्शन' पर संस्कृत मे धारा प्रवाह भापण किया ।' तेरापथ सघ की संस्कृत प्रगति से उन लोगो को वडा आश्चर्य हुआ । प्राय संस्कृतज्ञ लोग उदार दृष्टि से देखने के अभ्यास से वचित रहते हैं । पर यहा के विद्वानो मे ऐसा नही था । उनका दृष्टिकोण उदार तथा सहिष्णु था । उन्हे तेरापय के इस प्रगति परिचय से वडा हर्ष हुआ । हमे भी उनके सम्पर्क से वही खुशी हुई । श्राचार्यश्री ने कहा- मुझे ऐसा पता नही था कि यहा इतने संस्कृतज्ञ लोग रहते हे । यदि ऐसा पता होता तो हम यहा ठहरकर ग्रापस मे कुछ प्रादान-प्रदान करते । सचमुच गोष्ठी का वातावरण अत्यन्त सरस और प्रेरक था ।
यद्यपि श्राज ठहरने का स्थान बहुत अच्छा था । स्थान क्या था एक महल ही था । पर हमारी गति को रोकने में वह असमर्थ हो रहा । जो महान् लक्ष्य को लेकर चलते है वे इन मोहक आवासो मे कैसे उलझ सकते है ? मनुष्य का जीवन भी एक यात्रा है। बहुत सारे लोग सुन्दर और सुखद द्यावासो को देखकर वही रुक जाते है इसीलिए तो वे जीवन मे से रस नही पा सकते जो रस निरन्तर बढने वाले पाते है ।
शास्त्रो मे ठीक ही कहा है
चरन् वैमधु विन्दति, चरन् स्वादुमुदुम्बरम्, सूर्यस्य पश्य मारण यो न तन्द्रयते चिरम् ।
चलने वाला मधुर फल पाता है, सूर्य के परिश्रम को देखो जो चलने
में कभी श्रालस्य नही करता । इसीलिए हम भी चले जा रहे हैं ।