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चन्दनमलजी कठौतिया से कहा-क्या किया जाय? क्योकि वे ही आगे का स्थान तय करके आये थे। उन्होंने कहा-एक बार आप कुछ भी न कहे। जो सत आगे चले गये है उन्हे वही रोक दें। मैं जाकर देखता हूं कि क्या मामला है ? वे झट से आगे गये और गाव वालो से जो लाठिया लिए गांव के बाहर खडे थे, पूछा-क्यो भाई क्या बात है ? लोगो को जाने क्यो नहीं देते ?
ग्रामीण-जाने कैसे देते आपने ही तो कहा था कि आचार्यजी और कुछ साघु-सत आने वाले हैं । साघु-सत क्या ऐसे ही होते है ? इन लोगों के पास तो सामान से गाडिया भरी हुई है । न जाने ये कौन लोग हैं ? __चन्दनमलजी ने उन्हे समझाया-ये तो अपने ही लोग है । आचार्यश्री की सेवा मे आये हुए हैं। कोई गैर आदमी नहीं है । तब जाकर उन्होंने यात्रियो को गाव मे प्रवेश करने दिया। चन्दनमलजी ने वापिस पाकर आचार्यश्री से सूचना की तव हम सभी जल्दी-जल्दी चलकर आगे पहुंचे आचार्यश्री पहुंचे तब तक तो दिन बहुत ही थोडा रह गया था।
रात्री मे प्रवचन हुआ तो ग्रामीण लोग बडे प्रभावित हुए। अब उन्होंने क्षमा मागते हुए कहा-आचार्यजी ' हमे पता नहीं था कि आप लोग ऐसे महात्मा हैं ! हमने तो आपके भक्त लोगो को देखकर समझा जाने ये कैसे साधु होंगे ? आजकल साधु के वेश मे बडा पाखण्ड चलता है । डाकू लोग साधु का रूप बनाकर आते है और गाव को लूटकर चले जाते हैं । इसी भावना से हमने लोगो को गाव मे नही आने दिया । पर अव हमे आपकी साधना का पता चला है। आशा है हमारी धृष्टता को आप क्षमा कर देंगे।
आचार्यश्री ने मुस्कराते हुए कहा-नही इसमे धृष्टता को क्या बात है ? विचारणीय बात तो साधु वेश के लिए है कि उसे दुष्ट लोगो ने कितना कलुपित बना दिया है।