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बात सुन लेता
'देता है । दिव्य दृष्टि की भाति वह भूगर्भ के रहस्यो को भी जान लेता है । ब्रह्माड के एक छोर पर बैठकर दूसरे छोर तक की है । वह चन्द्रलोक मे पहुचने की तैयारी कर रहा है। किन्तु प्रणु प्र की विभीषिका ने मानवीय सभ्यता और संस्कृति को विनाश के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। उसके एक हाथ मे जीवन है और दूसरे हाथ मे मृत्यु । सुख, सग्रह तथा सोने के ढेर से नहीं प्राप्त किया जा सकता । उसके लिए अन्तर्मुखी प्रवृत्तिया और अध्यात्म की खुराक आवश्यक है ।
योजना आयोग के सदस्य श्री श्रीमन्नारायण ने कहा- आज विज्ञान ने अध्यात्म को आच्छन्न कर दिया है । पर मेरा विश्वास है कि विज्ञान ही मागे जाकर अध्यात्म मे परिरणत होने वाला है । हमारे ऋषि मुनि परम चिंतक और वैज्ञानिक थे । विज्ञान सिर्फ भौतिक नही होता | अध्यात्म के अभाव में वह केवल ज्ञान रह जाता है । प्रत. ज्ञान को अगर विज्ञान होना है तो उसे अध्यात्म के प्रचल मे आना होगा ।
प्रमुख विचारक श्रीजैनेन्द्रकुमार ने अपने चितनपूर्ण भाषण में कहाआज सेना और शस्त्र कम करने का सवाल उठाया जाता है। पर विज्ञान के क्षेत्र मे भयकर प्रतिस्पर्धा हो रही है । आज प्रगति की कसोटी ही विज्ञान बन गया है । जो देश विज्ञान के क्षेत्र मे पिछड गया वह आज अशक्त माना जाता है । मेरी विज्ञान मे भी आस्था है और धर्म मे भी आस्था है । वह धर्म, धर्म नही है जो विज्ञान से विमुख है । वैज्ञानिक का जीवन एक सत की तरह स्वच्छ तथा सयत होता है । विज्ञान मे अवगुण नही है । किन्तु स्वार्थी लोगो के ससर्ग से उसमे दुर्गुण आ जाते है । वस्तु का स्वभाव धर्म है । इसीलिए विज्ञान का सब पदार्थों के साथ समन्वय है ।
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आचार्यश्री ने अपने उपसहारात्मक भाषण में कहा -- आज के विश्व