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नहीं चल सकते थे। जैसे-तैसे कर वे एक निकट के गाव 'धूम' में जाकर रात्रि मे एक मकान मे ठहर गए। उनके पास विछाने के लिए कोई वस्त्र न था और न ओढने का ही । पोप का महीना और वह दिल्ली की ठडक । रात-भर उन्होने परो को सीने मे दबोच कर निकाली । हम लोग यहा मकान मे ठहरे हुए थे तो भी सर्दी से ठिठुर गए । उन्हे जाने कितनी सर्दी लगी होगी? रात कैसे विताई होगी इस कल्पना से ही कपकपी छुटने लगी।