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आचार्य श्री-तुम्हारा नाम क्या है ? बूढा- मेरा नाम वच्चुसिंह है। आचार्य श्री-तुम्हारे पुत्र कितने है ?
बूढा-(पूरा तो मुझे याद नही रहा पर उसने सभवत तीन या चार वतलाए थे) आपकी कृपा से सब कुछ ठीक है महात्माजी! सौ वीघे जमीन है। कुछ जमीन सरकार लेना चाहती है । पर जिस जमीन को हमने पसीना बहाकर प्राप्त किया है उसे सहज ही कैसे दिया जा सकता है ? घर पर साधु-महात्मा आते ही रहते है । पुत्रो को यह अच्छा नही लगता । पर हमारे अव दिन ही कितने शेप रहे हैं ? जीवन भर भागदौडकर इतना सव जोडा है, अव कुछ दान-पुण्य न करें तो क्या करें ? जवानी में हमने क्या नहीं किया था? सब कुछ हमने अपना पसीना बहाकर ही तो जोडा है। पर आजकल का जमाना ही ऐसा है । पुत्रलोग सब कुछ बटोरना चाहते हैं। कल ही बुढिया को पीट डाला । पर अब क्या करें ? देखते हैं किसी प्रकार भगवान् इस नया को पार लगा दे तो अच्छा रहे। __ उसने और भी बहुत कुछ कहा । आचार्यश्री ने भी बहुत कुछ कहा। दोनो के स्रोत खुल गये । खूब वातें हुई। सचमुच वास्तविक भारत तो गावो मे है । कितना सरल था वह वेचारा ग्रामीण । कितनी श्रद्धा थी, उसके हृदय मे । कितना पवित्र था उसका मन । कितनी सादगी थी उसके वेष मे । कितनी शान्ति थी उसके चेहरे पर । यह सब कुछ देखकर गांव से लौटने का मन ही नहीं होता। ___ आचार्य श्री कहने लगे-वास्तविक कार्य-क्षेत्र तो ये गाव है। जी वहुत चाहता है कि यहा वैठकर कुछ काम किया जाय । पर होनहार कुछ
और ही है । बहुत चाहते है पर फिर भी अभी तक जन-सकुलता से दूर नीरव-एकान्त मे चातुर्मास विताने का अवसर नहीं मिला।
आचार्यश्री-हम तो कल सूर्योदय होते ही यहा से चल पड़ेंगे।