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दिया जाए। यदि बार-बार परिवर्तन होता रहे तो उससे बहुत सारा समय तो परिचय बढाने में ही लग जाता है । इससे कार्य की गति नही बड पाती। एक वर्ष मे एक दल ने जितना परिचय किया उतना समय दूसरे दल को पुनः परिचय वढाने मे लग जाता है। जो क्षेत्र कार्य के लिए चुने जाए वहा एक-एक साधु-दल का रहना अत्यन्त आवश्यक है । क्योकि हमारा आन्दोलन सयम का आन्दोलन है । सयम की बात सहजतया तो गले उतरनी ही कठिन है । विना सयमी साधुप्रो के तो वह
और भी कठिन है। गृहस्थ कार्यकर्ताओ का सहयोग भी आवश्यक है। पर उससे पहले कि वे कार्यभार सभाले उन्हें प्रशिक्षित करना अत्यन्त आवश्यक है। प्रत्येक क्षेत्र मे एक-एक, दो-दो ऐसे सक्रिय कार्यकर्ता होने चाहिए जो आत्म-निर्भर हो। उनका थोडा-बहुत सहयोग किया जा सकता है । पर प्रमुख रूप से उन्हें अपना निर्वाह अपने आप ही करना चाहिए । इस प्रकार से यदि हम व्यवस्थित रूप से कार्य करेंगे तो आशा है वह वेग पकड लेगा । अणुव्रत समय की माग है । उसका प्रचार अत्यन्त
आवश्यक है। आचार्यश्री ने इन सारे विपयो पर विचार कर कोई निश्चित कार्यक्रम बनाने की भावना प्रकट की।