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वह अधूरा मानव है । जो चौथाई नियमो को ग्रहण करता है वह चौथाई मानव है । जो इन्हे ग्रहण नही करता वह तो मानव क्या दानव ही है । अत अणुव्रत वास्तव में मनुष्य को मापने का एक यन्त्र है | आचार्यश्री ने इसका प्रचार कर देश का बड़ा भारी भला किया है । भले ही इन स्वरों
श्रद्धा की सान्द्रता हो, पर वह तथ्य से विमुख नही है । सायकाल हम लोग एटा पहुँच गये । वहा पंडित मनोहरलालजी से जैन एकता के बारे मे लम्बी चर्चा चली ।