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१६-१-६०
शाम को सिकन्दराराऊ से विहार कर नानऊ नहर कोठी पा रहे थे तो स्थान-स्थान पर इतने ग्रामीण दर्शनार्थ खड़े थे कि आचार्यश्री को दसो जगह ठहरना पड़ा । अत मे समय थोडा रहा था। कुछ स्थानो पर तो आचार्यश्री रुक ही नहीं सके । मार्ग मे एक स्थान पर प्रभुदयालजी डाबडीवाल ने दर्शन किये। वे अभी राजस्थान से आ रहे थे। आचार्य गौरीशकरजी भी साथ मे थे। उन्होने निवेदन किया--मत्री मुनिश्री मगनलालजी का स्वास्थ्य बहुत ही गिर गया है । आशा नही की जा सकती कि वे इस बार जीवन और मृत्यु के संघर्ष मे विजयी बन सकें। आचार्यश्री ने कहा-मृत्यु ने अनेक बार उनके दरवाजे खटखटाये है पर वे सदा उसे टालते रहे है । पर फिर भी उसका भरोसा तो नही ही किया जा सकता । एक क्षण मे वह चैतन्य को मिट्टी की ढेरी बना देती है। हमने तो उनसे मिलने के लिए बहुत प्रयत्न किया है । इतने लम्बे-लम्बे विहार किये है । पर होगा तो वही जो विधि को मान्य है ।
प्रतिक्रमण के बाद दूर-दूर से बहुत सारे ग्रामीण एकत्र हो गये थे। सर्दी भी कडाके की पड़ रही थी। पास मे ही वहने वाली नहरो ने वातावरण को और भी शीतल बना दिया था। ग्रामीण बेचारे फटे-हुए तथा मलिन कपडो से शीत से अपनी रक्षा करने का असफल प्रयत्न कर रहे थे। एक तरफ उनकी उस दयनीय दशा का चित्र था तो दूसरी तरफ उनकी उत्कट भक्ति छलछला रही थी। अत. मुनिश्री चम्पालालजी ने निवेदन किया-आज प्रवचन प्रार्थना से पहले ही हो जाय तो अच्छा