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कीचड तो आज भी था। पर ठहरने का स्थान अच्छा था। श्री जानकीशरण डोडा के मकान में आचार्यश्री ठहरे थे और पास वाली धर्मशाला मे हम लोग ठहरे थे । डोडा स्वयं अणुव्रती हैं और यहा अणुव्रतभावना के प्रसार में भी अच्छा सहयोग दे रहे है। उन्ही के प्रायास से मध्यान्ह मे स्कूल के विशाल प्रागण में एक महती सभा में आचार्यश्री ने प्रवचन किया। सभी छात्रो ने संकल्प किया कि वे विद्यार्थी-वर्ग के अणुव्रतो का पालन करेंगे। नागरिको ने भी अनेकविध-सकल्पो से अणुव्रत के नियमो पर चलने का निश्चय किया। पिछली बार जब आचार्यश्री यहा से आए थे तो स्थान-स्थान पर अणुव्रत समितियों को स्थापना हुई थी। उनमे से अव भी अनेक समितिया सक्रिय है। आचार्यश्री तथा साधुप्रो को अनुपस्थिति में भी स्थानीय कार्यकर्ता यथासाध्य अच्छा कार्य कर रहे है । ___रात का विश्राम-स्थल सुलतानगज के वी० डी० ओ० के क्वार्टर्स थे। शाम को सारा कार्य-निपटाने में थोडा-बहुत विलम्ब हो ही जाता है। अत वन्दना का शब्द सकेत हो जाने के बाद भी सभी साधु एकत्र नहीं हो सके थे । बूढा सूर्य थक कर अस्त हो चुका था। उसके वियोग मे दिशाए विधवा वनिताओ की भाति कृष्णदुकूल पहन कर अपना शोक-प्रदर्शन कर रही थी। प्रतीची अब भी स्त्री-सुलभ रंग-विरगी आकर्पक पोशाक पहने हुए थी । शायद वह चन्द्र के आगमन की प्रतीक्षा मे थी । अत अधकार का वोध नहीं हो रहा था। पर सूर्य इस पृथ्वी-तल से जा चुका था यह स्पष्ट ही था। साधु लोगो को अभी तक उपस्थित