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१४-१-६० शाम को आज बेवर जूनियर हाईस्कूल मे ठहरे थे। यात्री लोग सामने वृक्षो के नीचे ठहरे थे। १८-२० मील का विहार करके आए थे, अत थकना तो स्वाभाविक ही था । पर लोगो की भीड इतनी थी कि बाहर आने-जाने मे भी बडी कठिनाई हो रही थी । किसी तरह से लोगों को समझा-बुझाकर आहार के लिए स्थान का एकान्त किया। बच्चे काफी संख्या मे थे। अत आचार्यश्री ने उन्हें चित्र दिखाकर नीति के प्रति आस्थावान् बनाने का प्रयत्न किया। ऐसे अवसरो पर मनुष्य मे सुसस्कारो का एक अकुर पैदा होता है । यदि वह आने वाले प्राघातो तथा हिमपातो से बचता रहे तो निश्चय ही एक महान् वृक्ष के समान पुष्पित व फलित हो सकता है।
प्रार्थना हुई, दो मिनट का मौन ध्यान हुआ और आचार्य श्री ने साधुओ से कहा- साधु काफी थक गए होगे । दिन भर चलते हैं। अत आराम करना चाहे तो कर सकते हैं ।
हम लोग तो आराम करने के लिए स्वतन्त्र थे पर आचार्यश्री को अभी निवृत्ति कहा थी? प्रवचन हुआ। प्रवचन मे करोडीमलजी गुप्ता ने जो पिछली बार विशिष्ट अणुवती बने थे, अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा- अभी तक मैंने पूर्ण वफादारी से अपने नियमो का पालन किया है तथा आगे भी करता रहूगा। श्री श्यामप्रसाद वर्मा ने भी इस अवसर पर अपने कुछ विचार प्रकट किए।