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१०-१-६०
आज कलकत्ते से श्रीचन्दजी रामपुरिया दर्शन करने के लिए आए थे। उनसे साहित्य-विषयक लम्बी चर्चा चली। उनकी साहित्यिक प्रतिभा तेरापथी गृहस्थ समाज मे अपने ढग की एक विशिष्ट प्रतिभा है । स्वामीजी के साहित्य का तो उन्होने गम्भीर अध्ययन किया है। कहा जा सकता है वैसा अध्ययन शायद गृहस्थ-वर्ग मे किसी का नहीं है । परिश्रम भी उनका अनुपम है । वकालत करते हुए भी द्विशताब्दी के अवसर पर प्रकाशित होने वाले साहित्य के प्रकाशन की गुरुतर जिम्मेदारी वे अकेले निभा रहे हैं । अपने साथ वे कुछ हस्तलिखित प्रतिया भी लाए थे। स्वामीजी की एक कृति व्रताव्रत-चौपई की दो-तीन प्रतियो मे से आदर्श प्रति कौन-सी मानी जाए यह परामर्श लेने के लिए ही वे उपस्थित हुए थे। एक प्रति थोडी-सी कटी हुई थी। प्राचार्यश्री ने पूछा-यह कटी हुई कैसे ? उन्होने कहा-असावधानी से एक बार एक चूहा पेटी के अन्दर रह गया । उसने इस प्रति को काट दिया ।
__ जैन साधुओ की प्रतिलेखन-विधि का समर्थन करते हुए आचार्यश्री ने कहा-इसीलिए तो भगवान् महावीर ने प्रतिलेखन को आवश्यक बताया है । प्रतिलेखन न करने का ही यह परिणाम है कि चूहा इसको काट गया।
साहित्य सम्पदा
साहित्य के बारे मे आचार्यश्री ने कहा-साहित्य समाज का दर्पण