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को अमल करना चाहिए। तुमने स्थान को गदा किया वह तो सभव है फिर भी साफ हो जाएगा। पर स्थानीय लोगो पर उसका जो प्रभाव पड़ेगा वह कैसे मिट पायेगा ? तुम्हे तो कोई नहीं जानता है। लोग कहेगे -- प्राचार्यजी आए थे उनके साथ वालो ने हमारा स्थान गदा कर दिया । गलती तो कोई करता है और उसका भार ढोना पडता है सबको । यह अच्छा नही है ।
उस वहन ने भी बडी नम्रता से अपनी त्रुटि स्वीकार की और भविष्य मे कभी ऐसी त्रुटि नही करने का आश्वासन दिया । अपनी गलती से उसे स्वयं ही बडा पश्चात्ताप हो रहा था। कहने लगी- मुझे इसका प्रायश्चित दीजिए ताकि मैं पश्चात्ताप से मुक्त हो सकू । प्राचार्य श्री ने उस गलती का उसे एक तेला (लगातार तीन दिन का उपवास ) दण्ड वताया । उसने सहर्ष उसे स्वीकार किया और भविष्य में कभी अपनी गलती को नही दुहराने का आश्वासन दिया। सभी यात्रियो मे एक जागरूकता आ गई। और वे जहा भी ठहरते अपने स्थान को स्वच्छ करने का पूरा ध्यान रखते ।
आहार से पहले कन्नौज के भूतपूर्व विधान सभाई तथा कन्नौज अणुव्रत समिति के सयोजक श्री कालीचरणजी टडन ने अपने साथियो सहित प्राचार्यश्री के दर्शन किए। उन्होने निवेदन किया कि कम-से-कम दो दिन तो आपको कन्नौज रुकना ही पडेगा । श्राचार्यश्री ने कहा -- दो दिन छोड हम तो यह विचार कर रहे हैं कि अभी कन्नौज जाए या नहीं ? क्योकि कन्नौज जी० टी० रोड से दो मील एक ओर रह जाता है । अत: सभव नही है कि हम अभी कन्नौज जा सके ।
टण्डनजी - क्यो ? आप इतने वायु-वेग से क्यों चल रहे है ?
आचार्य श्री — इसके मुख्य दो कारण हैं। पहला तो हमे इस बार तेरापथ द्विशताब्दी समारोह राजस्थान मे करना है । दूसरा मुनि श्री मखलालजी अभी आत्म शुद्धि के लिए सरदारशहर मे आजीवन धन