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११-१-६०
रुपये बरसे पर......
पानी के प्रवाह की भाति हमारा दल भी जी० टी० रोड पर चल रहा था अचानक रगलालजी को सड़क पर कुछ नोट विखरे हुए मिले। आगे चलते हुए दौलतरामजी से कहने लगे--- आज रुपयो की वर्षा कैसे कर रहे हो ? दौलतरामजी ने कहा- नहीं, मेरे पास रुपये -कहां हैं ?
रगलालजी -- तो ये रुपये किसके गिरे है ? दौलतरामजी - मुझे तो पता नही ।
रंगलालजी - तो क्या करे इन रुपयो का । यही गिरा दू? हम अणुव्रती है क्या करेंगे दूसरो के रुपयो का ?
दौलतरामजी -- गिराते क्यो हो ? गाव मे ले चलो किसी के होंगे तो दे देगे नही तो ग्राम पंचायत में जमा करा देंगे । उनके कहने पर रगलालजी ने रुपये साथ ले लिये। गाव मे आकर पूछा तो पता चला वे तो यात्रियों के ही है । रगलालजी कोई बहुत वडे पैसे वाले नही है । पर नैतिकता कोई पैसे से थोडी ही आती है ? जिसमे अध्यात्म भावना का अकुर हैं वह कभी दूसरो के पैसो को नहीं छू सकता । जहा आज पैसे - पैसे के लिए मनुष्य दूसरे से लडाई करने के लिए तैयार रहता है, वहां सत्ताईस रुपये तो बहुत होते हैं ।
व्यक्ति और सिद्धांत
घोरसला
पहुचकर
श्राचार्यश्री अपने अध्ययन मे व्यस्त हो गए । एक