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६-१-६०
सुवह चार वजे ही मिल के भोपू की कर्कश ध्वनि से नीद उड गई । पर जल्दी उठने से स्वाध्याय हो गया यह तो अच्छा ही हुआ । आकाश धूमिल था। वातावरण कोलाहलपूर्ण था। फिर भी आज विहार से छुट्टी थी। बहुत दिनो से यह निवृत्ति मिली थी। अत. पंचमी समिति से निवृत्त हो आचार्य श्री कुछ घरो मे दर्शन देने के लिए भी गये। रह-रहकर पुरानी स्मृतिया सजीव हो रही थी। दोनो ओर बडी-बडी गगनचुम्बी अट्टालिकाएं खडी थी। नीवें भी उनकी न जाने कितनी गहरी रही होगी पर वे भरी गई थी गरीबो के परिश्रम से । सब लोग उन मनोहारी अट्टालिकामो को देखते है पर उन्होने कही गढे वनाए हैं, उन्हे कौन देख सकता है ?
दिन भर लोगो का आगमन रहा । रिजर्व बैंक के मैनेजर श्री एम० एम० मेहरा तथा उनकी पत्नी ने जो पिछली वार अणुव्रती भी बन चुके थे काफी देर तक अनेक विषयो पर शका-समाधान किया । स्थानीय अणुव्रत समिति के अध्यक्ष श्री गिल्लूमलजी बजाज आदि ने भी अणुव्रत भावना के प्रचार के बारे मे विस्तार से विचार-विमर्श किया। फिर करीब एक बजे वहा से विहार कर आचार्यश्री एल्गन मिल के चीफ इंजीनियर श्री जे० एस० मुरडिया, कृषि अनुसन्धान केन्द्र के अध्यक्ष डा० आर० एस० माथुर, एडवोकेट इन्द्रजीत जैन आदि परिचित लोगो के घरो का स्पर्श करते हुए शाम को कल्याणपुर विकास केन्द्र मे पधार गये ।
डा० माथुर ने तो आचार्यश्री के रात-रात अपने वगले पर ही ठहरने का प्रवन्ध कर दिया था। घूमते-घूमते वहा पहुचने तक विलम्ब भी