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काफी हो चुका था। पर कल्याणपुर का कार्यक्रम बन चुका था। अतः वहाँ रुकना कैसे संभव हो सकता था?
सुगनचन्दजी ने कहा-अव दिन तो बहुत थोडा रह गया है अतः दिन छिपने से पहले-पहले कल्याणपुर पहुच जाना कठिन लगता है। मैं यह तो कैसे कह सकता हूँ कि यही ठहर जाए पर कठिनता अवश्य है।
आचार्यश्री ने कहा-अब तो बहुत सारे साधु तथा उपकरण भी आगे चले गए है अत. हमे भी आगे ही जाना होगा। और आचार्य श्री ने जल्दी-जल्दी अपने कदम जी. टी. रोड की ओर बढा दिये ।