________________
३७
वे तो जमीन मे गड से गये । पर जो प्रमाद उनकी ओर से हो चुका उसे तो स्वीकार करना ही पडा । बस 'तहत्त' के सिवाय और कोई चारा नही था । आकर प्रतिक्रमण करने लगे ।
मैं इस घटना पर वडी देर तक विचार करता रहा । सोचता रहाकितना वैषम्य है आज के विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों में और इन मुमुक्षु विद्यार्थियों मे । वहा अध्ययन के लिए बहाने बनाये जाते है और यहा अध्ययन के लिए प्रतिस्पर्धा है । सब कोई चाहता है कि मैं किसी से पीछे नही रह जाऊँ । यद्यपि लम्वी यात्राओ से हमारे गम्भीर अध्ययन को कुछ ठेस पहुची है, इसमे कुछ कमी आई है । पर आकाक्षाओ मे आज भो वही वेग है जो अपने साथ सब कुछ वहा ले जाना चाहता है । यह सब स्वस्थ पथ-दर्शन का ही परिणाम है । ग्राचार और विचार दोनो मे संतुलन रखने की आचार्यश्री की क्षमता सचमुच बहुत ही दुर्लभ है ।
रात्री मे प्राचार्यश्री ने पुलिस के नौजवानो को उपदेश दिया । जिससे प्रभावित होकर कुछ लोगो ने प्रवेशक अणुव्रती के कुछ नियम लिये |