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सूर्योदय हमारे लिए विहार का सन्देश लेकर प्राची मे प्रभासित हुआ हमने चरण जी० टी० रोड की ओर बढा दिये । कुछ दूर खागा की गदी
और तग गलियो को पार कर ज्योही जी० टी० रोड पर आये मजिल जैसे सामने-सी दीखने लगी । जी० टी० रोड व्यस्त तो रहती ही है। अत. ज्योही हम उस पर चलने लगे कि बसो के आने जाने का ताता बँध गया। खागा सडक के दाए किनारे पर बसा हुआ था अत हमे भी स्वभावतः ही दाए होकर चलना पड रहा था । पर हमारे यात्री दल को यह नियमोल्लघन कब सहन हो सकता था । तत्क्षण आवाजें आने लगी-साईड ! साईड ।। अत बसो के निकल जाने पर हमने झट से अपनी साईड बदल ली और वाए होकर चलने लगे।
कई दिनो से आज मौसम कुछ खुला हुआ था। कल वर्षा खुलकर हो चुकी थी । अतः बादलो के मन की निकल चुकी थी सद्य स्नात पुरुषो की भाति मौसम भी कुछ कम सर्दी अनुभव कर रहा था। अत पोष महीने जैसी ठड पड़ रही थी। चलने से स्वभावत ही शरीर गर्म हो जाता है। अत एक भाई (सीताराम) जिसने बहुत सारे कपड़े पहन, ओढ रखे थे पसीने से तर होकर कहने लगा—आज तो बडी गर्मी पड़ रही है । दूसरे भाई दौलतरामजी ने प्रतिवाद किया-नही जेष्ठ महीने जैसी गर्मी तो नही पड रही है। दोनो वस्तुस्थिति के दो विरोधी किनारो पर चल रहे थे। अत आचार्य श्री ने बीच में ही अपने चरण रोक लिए और कहने लगे-दोनो ही अतिया अच्छी नही है। न जेठ महीने जैसी गर्मी है और