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आचार्य श्री वे सत दूसरे प्रकार के हैं । हम लोग अपने लिए बनाया हुआ भोजन नही लेते। इसलिए मैं कह रहा हू कि आप हमें भोजन कैसे देंगे ? हाँ यह हो सकता है कि आप अपने खाने के लिए जो कुछ तैयार करें उसमे से थोडा कुछ हमे दे दे |
वकील - अच्छा तो वही कीजिए। हम अपने घर मे बहुत सारे लोग हैं | आज हम नही खाएगे आपको ही खिलाएगे । अधिक नही तो आप पाच-सात साधु ही हमारे घर भोजन कर लीजिए ।
कुछ
आचार्य श्री - हम गृहस्थ के घर पर भोजन नही कर सकते । जो मिलता है उसे अपने पात्र में ले लेते हैं और अपने स्थान पर ग्राकर ही खाते है ।
वकील - अच्छा तो वह भी कीजिए ।
आचार्य श्री - आपका घर यहा से कितनी दूर है ?
वकील --- करीब एक मील तो होगा ही ।
आचार्य श्री — तब तो मैं नही जा सकूंगा किसी दूसरे साधु को भेज सकता हूँ ।
वकील - अच्छा तो वह भी कीजिए ।
आचार्य श्री - पर आपके भोजन पकाने का प्रतिदिन का समय कौनसा है ?
वकील - प्रायः इसी समय हम लोग भोजन पकाते हैं कुछ देरी भी हो सकती
प्राचार्य श्री - हा तो हमारे लिए आप जल्दी मत करना प्रतिदिन जिस समय भोजन बनता है उसी समय हम आपके घर साधुम्रो को भेज देंगे । एक बात का ध्यान रखना आवश्यक है हमारे लिए कुछ भी विशेष नही बनाया जाए। आप जो कुछ खाते है उसमे से ही हम जरा कुछ ले लेंगे। कुछ भोजन बन गया होगा तो वह ले लेंगे और नही हुआ होगा तो ठडी, बासी, छाछ, मट्ठा जो कुछ भी होगा वही ले लेंगे ।