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वकील - वाह ! ऐसा भी कभी हो सकता है । हमारा गृहस्थो का भी तो अपना धर्म होता है । कोई अतिथि हमारे घर आए और हम उसकी अच्छी तरह से सेवा नही करें तो हम अपने धर्म से स्खलित नहीं हो जाएगे ?
आचार्य श्री - पर हमारे लिए भोजन बनाकर देने से हम अपने धर्म से स्खलित नही हो जाएँगे ?
वकील-- हमारे घर मे जो अच्छी से अच्छी चीज होगी वही हम आपको देंगे।
आचार्यश्री - यह तो ठीक है कि आपका धर्म सेवा करना है पर वैसी सेवा करना तो नही कि जिससे हमारा नेम-धर्म टूटता हो । इसीलिए हमारे लिए कोई चीज करवाने की आवश्यकता नही है ।
वकीलवही देंगे ।
आचार्य श्री -- ऐसा नही । हम आए हैं इसलिए श्राप हलुआ बनाए वह भी हमे स्वीकृत नही है।
वकील नही, नही । आज मंगलवार है । इसलिए हम लोग नमक नही खाते | हम हलुआ बनाएगे और आपको हलुआ ही देगे । अच्छा तो आपका सामान कहा है ?
आचार्य श्री -- हमारा सामान बस इतना ही है जितना आप हमारे पास देख रहे हैं ।
वकील – सर्दी मे इतने से कपडो से आपका काम चल जाता है 1 आचार्य श्री --- आप देख लीजिए चल ही रहा है न ! हम लोग न तो इससे अधिक सोमान रखते है और न पैसा भी रखते है । यहा तक कि अपने पास करण भर भी धातु नहीं रखते। क्या आप हमे कुछ भेंट देंगे ?
वकील - हा, आप कहेगे वही भेट दे सकते है ।
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- अच्छा। तो आज हम भी हलुआ खाएगे और आपको भी
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