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आचार्य श्री - रुपयों, पैसो की भेंट तो हम लेते नही । इसलिए हम वही भेंट लेंगे जो आपकी प्यारी से प्यारी है अर्थात् तम्बाकू ।
वकील --- यह तो बहुत बडी बात है पर आपके वचन का लोप भी कैसे कर सकता हू । कुछ तो तम्बाकू छोडगा ही ।
मैंने उनसे पूछा- क्या आपने अणुव्रत का नाम सुना है ? तो कहने लगे - अरे ! श्राज अणुबम को कौन नही जानता । हम तो उसका विरोध करते हैं ।
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मैं नही मैं रवम की बात नही कहता अणुव्रत को कहता हू । वकील - अणुव्रत क्या है ? मैं तो नही जानता ।
आचार्य श्री ने उन्हे अणुव्रत का परिचय दिया तो कहने लगे-तो क्या आप इसकी एक शाखा हमारे यहा खोल सकते हैं ?
आचार्य श्री - पहले आप इसके साहित्य का अध्ययन कीजिए । फिर इस विषय पर बात करेंगे । इस प्रकार लम्बी देर तक चर्चा होती रही और अन्त मे जव उनके भोजन पकाने का समय हो गया तो आचार्य श्री ने मुनिश्री नेमीचन्दजी को उनके घर भिक्षा के लिए भेजा ।