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फिर मैंने अन्दर एक कपडा और भी ओढ रखा है अत गाठ लगा देनी कठिन थी।
आचार्य श्री-पर मुझसे तो ऐसे चला नही जा सकता । फिर विना गाठ दिये हमे भिक्षा के लिए जाना भी तो नही है ।
मैंने अपनी त्रुटि स्वीकार कर ली और चुपचाप चला आया । पर प्राचार्य श्री तो आज मानो त्रुटिया निकालने के लिए ही बैठे थे । दोचार साधुओ को और भी पकडा । कुछ साधुओ की झोली गीली हो गई। कुछ के पात्र में से पानी छलक गया, सबको एक-एक करके अपने पास वुलाया और उन्हे उनकी गलती समझाई। सचमुच प्राचार्यश्री बड़ी सूक्ष्मता से मनुष्य प्रकृति का अध्ययन करते है।
शाम को हम खागा ठहरे। खागा अणुव्रत-समिति के कार्यकर्ता सिद्धनाथ मिश्र का गाव है । अत आज की सारी व्यवस्था उसने ही की थी। शाम को आचार्यश्री स्वय उसके घर भिक्षा के लिए पधारे ।