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दो कदम चलना भी कठिन हो जाए। चारो और कीचड-ही-कीचड हो गया था । कभी-कभी मोटरो के लिए मार्ग छोडना पडता तो पैर कीचड़ से लथपथ हो जाते । फिर सडक पर चलना भी कठिन हो जाता । सडक पर चलने की कठिनाई और भी थी। कभी-कभी मोटरें जब साईड देने के लिए सड़क से नीचे उतरती तो पहियो मे इतना कीचड फंस जाता कि वापिस सडक पर आने से बहुत दूर तक सडक पर मिट्ठी-ही-मिट्टी हो जाती। साधारणतया यहाँ की मिट्टी चिकनी होती है। अत उसमे ककड नहीं होते। पर सड़क के आस-पास मे तो ककड भी बिछाने पडते हैं । अत' मिट्टी के साथ मिले हुए वे ककड कभी-कभी जब पैरो के नीचे
आ जाते तो एक बार तो काटे से चुभने लगते । वैसे भी पक्की और फिर गीली सडक पर नगे पैर पडते तो घिस-घिसकर लहू-लुहान हो जाते। साधारणतया रवड के टुकडे से हम अपने पैरो की सुरक्षा कर लिया करते थे। पर वर्षा मे जब सडक पर पानी पड़ा रहता तो वे भी गीले हो जाते और उन्हे बाँधे रहते चलना कठिन हो जाता। मुलायम रखड भी पानी से गीला होकर चमडी को कितनी सूक्ष्मता से घिसता है इसका अनुभव हमे वर्षा के दिनो मे प्राय हो जाया करता था।
सडक पर स्थान-स्थान पर पानी पडा था। अत. जब कभी मोटरें उसमे से होकर निकलती तो वे दूर-दूर तक छीटे उछाल देती । हमे दूर से ही सावधान हो जाना पड़ता था। ड्राइवरो को इतनी चिन्ता कहा होती है जो वे दूसरो का ख्याल रखें । वे तो अन्धाधुध मोटरे चलाते है। हमने सुना था कि ड्राइवर लोग प्राय शराब पीकर मोटरें चलाते है। इसीलिए रास्ते मे हमने अनेक दुर्घटनाए भी देखी। कही स्वय मोटरें ही गड्ढो मे गिर गई थी तो कही वृक्षो, पुलो तथा दूसरी मोटरो से टक्कर खाकर वे चकनाचूर हो गई थी। अभी-अभी हमारे आने से थोड़ी देर पहले एक मोटर ने एक बैलगाडी को इतने जोर से धक्का