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दिया कि वेचारा हृष्ट-पुष्ट बैल आहत होकर मर गया । हमने अपनी
आखो से उसे अन्तिम श्वासें लेते देखा था। गाडी मे कोयले भरे थे। सारे कोयले सडक पर दूर-दूर तक विखर गये थे । गाडी का तो टुकड़ाटुकडा हो गया। एक्सीडेंट करके मोटर वाला तो दौड गया था। पर वेचारे वैल वाले गरीव के गले मे आफत आ गई। पुलिस घटना-स्थल मे पहुच गई जो शायद अपनी पूजा की प्रतीक्षा कर रही थी।
शाम को आज भी थाने मे ही ठहरे थे। थोडी-सी जगह मे जैसेतैसे करके काम चला लिया। वर्षा अब भी चालू थी। अत कुछ साधु एक दूसरी कोठरी में ठहरे हुए थे। चूकि वूदो मे हम भिक्षा लेने नही जाते । अतः पास ठहरे यात्रियो से जो कुछ भिक्षा मिली उसे वाटकर खा लिया । पर रात्रि शयन की समस्या थी। इसकी हमसे अधिक चिंता थी सुगनचन्दजी आचलिया, डालचन्द वरडिया तथा खेमराजजी सेठिया को। वे अव भी इधर-उधर चक्कर लगा रहे थे। अचानक उन्हे पास में ही एक वीज गोदाम मिल गया। उसके अधिकारी से बातचीत करके उन्होने उसे हमारे लिए खाली करवा दिया । सौभाग्य से साय गुरु वन्दन के समय बूदें भी थोडी देर के लिए रुक गई। हम कुछ साधु अपनेअपने उपकरण लेकर गोदाम में आ गये। रात वहा शाति से कटी। थके हुओ को नीद भी वडी सुखद आती है।