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बडा दुःख हुआ कि उसने निरपराध मुनियों को मार डाला । पर अव क्या हो सकता था? उसे कलन्दर मुनियो की तपश्चर्या पर बड़ी श्रद्धा हुई।
आगे प्राचार्यश्री का स्वागत करते हुए उन्होने कहा-आचार्यश्री तुलसी भी उसी जैन परम्परा के एक आचार्य हैं। अगुव्रत-आन्दोलन के रूप में एक असाम्प्रदायिक आन्दोलन चलाकर तो आपने भारत में ही नही अपितु दूर-दूर के देशो तक प्रख्याति पा ली है। आज इस तीर्थस्थान प्रयाग में आचार्यश्री का स्वागत कर हम अपने आपको गौरवान्वित अनुभव कर रहे है। __तत्पश्चात् 'गोस्वामी' मासिक पत्र के सम्पादक महादेव गिरी ने आचार्यश्री को उसका 'महात्मा विशेषाक' समर्पित किया।