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जाए वहा स्कूल तथा थाना आदि मिल सकते है । सब थानो पर अध्यादेश पहुच गए है कि हम चाहे तो हमे थाना या स्कूल में ठहरा दिया जाए । इसलिए जहाँ भी जाते है थानेदार आदि पहले ही थाने के आगे खडे मिलते हैं । हम सभी जगह थानो में ही नहीं ठहरते पर अपनी ओर से उनकी तैयारी रहती है । कही-कहीं तो हमे जेल घर मे भी ठहरना पडता है । आज भी हम जेल घर मे ही सोए थे ।
आचार्य श्री ने हंसते हुए कहा-आज तो तुम जेली हो गए । सचमुच परिस्थिति का कितना अन्तर पड़ जाता है। एक तो अपराधी जेल मे जाता है और एक साधु जेल मे जाता है। कितना अन्तर है दोनो मे । एक मुक्त भाव से जाता है और दूसरा अपराधी बन कर जाता है ।
थानेदार आज कही दौरे पर गया हुआ था। अत काफी देर से लौटा । पर उसका लडका व्रजेन्द्रकुमार वडा हो चपल शिशु है । कई वार आचार्य श्री के पास आता और निडर होकर बातें कर भाग जाता। आचार्य श्री उसे रोकना चाहते तो भी नही रुकता । आचार्य श्री भी उसके साथ विल्कुल शिशुवत् वाते करने लगे।
एक वार वह कहने लगा--गुरुजी । भजन सुनाइये। आचार्य श्री ने कहा-थोड़ी देर मे अभी भजन शुरू होगा।
व्रजेन्द्र-नही अभी सुनाइये। आजार्य श्री-अभी थोड़ी देर मे मुनाएगे। बजेन्द्र-नही अभी सुनाइए।
वाल-हठ के कारण आखिर आचर्य श्री को ही उसकी बात माननी पडी । सदा के नियमित समय से पहले ही प्रार्थना का शब्द हो गया। सव साधु आकर प्राचार्य श्री के पास बैठ गए।
व्रजेन्द्र-नही, खडे होकर भजन सुनाइए । आचार्य श्री ने मुनि मुमेरमलजी को खडा किया और प्रार्थना प्रारंभ