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इसी प्रकार जिन' शब्द
पुद्गल शब्द का अनुचिन्तन करते हुए उन्होने बताया - यह शब्द बहुत ही प्राचीन है । उसकी जो " पूरणगलनधर्मत्वाद् - पुद्गल " यह व्युत्पत्ति की जाती है, यह तो बहुत ही अर्वाचीन है । मेरे विचार से इसका मूल 'बुत - गल' ऐसी व्युत्पत्ति मे होना चाहिए । 'वुत' ही अपभ्रष्ट होता होता आज पुद्गल बन गया है ऐसा लगता है । भी सभवत. 'सिन' से बना है। सुमेरियन भाषा मे 'सिन' का अर्थ चन्द्रमा होता है । चीनी भाषा मे भी यह इसी रूप में प्रयुक्त हुआ है । 'जयतीति जिन. ' 'यह व्युत्पत्ति बहुत बाद की मालूम देती है । यदि इस प्रकार हम एक-एक शब्द की आलोचना करें तो बहुत सारे तथ्य उद्घाटित हो सकते हैं । आवश्यकता है इस दृष्टि से आगमों पर घोषपूर्ण कार्य हो । श्राचार्य श्री ने जब उन्हे यह संकेत दिया कि आपको इस छिपी हुई सामग्री को प्रकाश मे लाना चाहिए। तो उन्होंने कहा – मेरी इच्छा है कि मैं जैन आगमी पर ऐतिहासिक दृष्टि से कुछ अन्वेषण करूँ। फिर मुनि श्री नथमलजी ने उन्हें विस्तार मे आचार्य श्री के सान्निध्य मे चलने वाले आगम शोध कार्य का परिचय दिया जिससे वे बहुत प्रभावित हुए ।