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नाना जीवापेक्षया
एक जीवापेक्षया
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मार्गणा मार्गणा
प्रमाण
प्रमाण
प्रमाण जघन्य
गुण प्रमाण
जघन्य स्थान|१३
अपेक्षा
प्रमाण, उत्कृष्ट
जघन्य
अपेक्षा
उत्कृष्ट
अपेक्षा
औदारिक
(२२
...
निरन्तर
६६/१समय
-
मरकर जन्मते ही काय योग होता ही है
३३ सा +ह अंत- मुं.+२ समय
औ.से चारों मनोयोग फिर चारों वचन योग फिर सर्वार्थ सिद्धि देव, फिर मनुष्यमें अन्तर्मु. तक औ. मिश्र, फिर औदारिक
औदारिक मित्र
६७३३ सा. + पू. को.
+ अन्तमुं.
वैक्रियिक वैक्रियिक मिश्र
औ. काययोगियों में भ्रमण
विग्रह गतिमें १ समय कामण फिर औ. मिश्र
व्याघातकी अपेक्षा | साधिक १०००० नारकीब देवों में जा
वहाँसे आ पुनः वहाँ। ही जानेवाले मनु.व ति.
० असं. पु. परि.
(१समय
२६ वर्ष पृ.
आहारक आहारक मिश्र कामण
|२६४
::
निरन्तर
शुद्र भव-३समय
७६ अर्ध. पु.परि.८अन्त. ७६] ..-७ अन्तर्मु. ७६ असं.४ अस. उत. | बिना मोड़ेकी गतिसे भ्रमण अवसर्पिणी
निरन्तर गुणस्थान परिवर्तन करनेसे । योग भी बदल जाता है।
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... 'निरन्तर
:
निरन्तर (उत्कृष्टवत)
(मनो वचन सा.व १ (चारों प्रकार के विशेष (तथा काय सा.व औ. |४-७
:
मूलोघवत
उपशमक
| |
१५८
क्षपक
१५६
१५६
औ. मिश्र
मूल ओघवत् निरन्तर
निरन्तर मूलोघवत्
मुल ओघवत
निरन्तर मिश्र योगमें अन्य योग रूप परि, भी नहीं तथा गुणस्थान परि. भी नहीं
|
१६६ १७१)
१समय देखें टिप्पण १६४ वर्ष पृ.
निरन्तर ( उत्कृष्टवत) १३१६६ क्रियिक
मनोयोगवत -
मनोयोगवत वै. मिश्र
१समय | १२ मुहूर्त १७२/
निरन्तर (उत्कृष्टवर) २-४ १७३/ - औ. मिश्रवद
औ. मिश्रवद आहारक व मिश्र ६ १७४ | १समय ...
वर्ष पृ. १७६
निरन्तर ( उत्कृष्टवत् । कार्मण
__ १.२,४,१३१७७| - औ. मिश्रवत् १७७ । pes! १ समय अन्तर असं यत सम्यग्दृष्टि देव नरक व मनु. का मनु. में उत्पत्तिके बिना और असं. मनुष्योंका तिर्यचों में उत्पत्तिके बिना वर्ष पृ. अन्तर असंयत सम्यग्दृष्टियोंका इतने काल तक तिर्यच मनुष्यों में उत्पाद नहीं होता
मनोयोगवत् औ. मिश्रके सासादनवव औ, मिश्रवत औ. मिश्रके सासादनवव
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