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मार्गणा
मार्गणा
३. काय मार्गणा :
चार स्थावर बा. सू. प. अप.
वनस्पति साधारण निगो. बन नि बा. सु.प. अप वन प्रत्येक मा प त्रस, सा. प. अप. त्रस ल, अप. चार स्थावर बा. सू. प. अप.
बन, नि. सा. बा. सु.
प. अप.
वन. प्रत्येक सा. प. अप.
प्रस सा. प.
उपशमक
क्षपक त्रस ल. अप.
४. योग मार्गणा
पाँचों मन व वचन योग
काययोग सा.
-
गुण
स्थान
...
...
१
१
१
१
२
प्रमाण
१३०
१३३ |
१३६)
१३६
१४०
३ १४०
१४३
४ ५
१४३
१६
१६
१६
१६
१६
६-७ १४३ ८-११ १४६ ८-१४ १४६ |
१
१५१ |
२२
२२
जघन्य
::::::
: ।।
1 | I
1 :
:
नाना जीवापेक्षया
प्रमाण
अपेक्षा | उत्कृष्ट
१
सू सू
निरन्तर
::::::
:
::
| १३६
मूल ओधवत् १३६)
१४०
:::
::
१३० |
१३३
99
१४० १४३
१४३
१४३
१४६
१४६
१५१
१६
१६
१६
१६
१६
निरन्तर २२
२२
:
11:
!!! !! 18
:
प्रमाण
१२
१३१
[१३४
४८
५४
५७
१३७.
१३६
१४१
१४१ |
१४४ |
[ १४४ ]
१४४ ।
१४७
५१
५१
१४६
१५१ |
जघन्य
क्षुद्रभव
::::::
।।।
1}
अन्तर्मुहूर्त
१ समय
अपेक्षा
अविवक्षित पर्याय में जाकर लौटे
19
19
11
"
11
""
11
मूल ओघवत्
:::
10
निरन्तर
एक समय अन्तर
सम्भव नहीं
मरण पश्चात् भी पुनः काय योग होता ही है।
एक जीवापेक्षया
प्रमाण
१
सू सू
१३२
१३८ ।
१३६ |
१४२
१३५ ।
१४२
१४५
१४५
१४५
१४८
५५
५०
१४६
१५१/
४६ बस पू. परि
५२ असं लोक
उत्कृष्ट
"1
२३. परि
असं पु. परि
39
"7
31
अर्थ, लोक
Req. ft.
२०००सा+पू. का. पू. -आ / असं अंतर्मु
.. १-२ अंतम् ।
- १० अंतम्, ४दिन १२ अंत
वर्ष १० अं
६९ असं पु. परि
६४ अन्तर्मुहूर्त
अपेक्षा
जति पर्यायोंमें भ्रमण
पृथिवी आदिमें भ्रमण
"1
निगोदादिमें भ्रमण
वनस्पति आदि स्थावरोंमें भ्रमण
अविवक्षित वनस्पतिमें भ्रमण
चार स्थावरों में भ्रमण
निगोदादिने भ्रमण मूल ओ
असंज्ञी पंच भव प्राप्त एक भवनत्रिक में उत्पन्न हो सासादन वाला हुआ। च्युत हो सोंमें भ्रमण कर अन्तमें सासादन फिर स्थावर |
17
ही प्राप्त एक श्यों पर गिरे। भ्रमण फिर संज्ञाकरे उपरोक्त पर एक से मनु भन नोटः-१० अंतर्मु, के स्थानपर क्रमशः
३०.२८, २६, २४
मूल ओघवत् निरन्तर
काययोगियों में भ्रमण
योग परिवर्तन