________________ 1 देवदर्शनविधि हुई हो अथवा खानेवाला खानेमें ध्यानहीन हो तो खाने का खाद बिगड जाता है अगर उसका पता ही नहीं लगता। इसी तरह अशुद्ध उच्चारणमें अथवा उपयोगशून्यतामें समझ लेना चाहिये। ____ अब चैत्यवंदन स्तवनादि मंदिरमें कैसे बोलने चाहिये यह बात भी समझने लायक है / चैत्यवंदन स्तवनादि कितनेक सर्वत्र (मंदिरमें पडिकमणा या पोसहमें) बोलने लायक होते हैं, कितनेक अमुक स्थानमें कहने लायक / कितनेक पुरुषके कहने लायक होते हैं और कितनेक स्त्रीके कहने लायक / जिस चैत्यवंदनमें स्तवनमें और स्तुतिमें सिर्फ भगवान् के गुणों का वर्णन हो अथवा अपनी आत्मनिन्दा हो वे मंदिर प्रति क्रमणादिमें सर्वत्र बोले जाते हैं, परंतु जिनमें आठम ग्यारस आदि तिथियोंका वर्णन हो या दान शील तपस्या ध्यान पूजा विगैरहका उपदेश हो ऐसे स्तवनादि प्रतिक्रमण सामायिक या पौषध में ही बोलने चाहिये मन्दिरमें नहीं बोलने चाहिये। __स्तुतियों के विषयमें भी यही बात है / पांचम आठम इ. ग्यारस आदि तिथियोंकी स्तुतियां प्रतिक्रमणादिमें बोल सकते हैं परंतु भगवान् के सामने तो भगवान के गुणवर्णनवाली स्तुति ही बोलनी चाहिये। चार स्तुतियोंमें पहली स्तुतिमें एक तीर्थङ्करका गुणवर्णन, दूसरीमें सब तीर्थङ्करोंका गुणवर्णन, तीसरीमें ज्ञान का