________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 29 यों के ऊपर जो अर्ध चंद्राकार किया गया है वह सिद्धशिलाका सूचक है, इससे भावना यह होनी चाहिये हे त्रिलोकीनाथ ! चार गति के भ्रमण को हठा कर मुझे ज्ञान दर्शन और चारित्र दे कर मोक्षस्थान पहुंचनेको शक्तिमान कर। ऐसी भावना के साथ साथिया कर उसपर सुपारी विगैरह फल रक्खे। भावपूजा भगवान् की दाहिनी तर्फ (जीमणी तर्फ) बैठ कर चैत्यवंदन करना यह भावपूजा है। चैत्यवंदन के तीन भेद हैं-जघन्य मध्यम और उत्कृष्ट / - जघन्य चैत्यवंदन वह है जिसमें सामान्य नमस्काररूप कोई एक श्लोक या दुहा बोला जाता है / ___ मध्यम वह है कि जिसमें चैत्यवंदन नमुत्थुणं दोनों जावंति स्तवन जयवीयराय तथा अरिहंत चेइयाणं बोलकर एक नवकार का काउस्सग्ग कर ऊपर एक स्तुति बोली जाती है / __उत्कृष्ट वह है कि जिसमें चार अथवा आठ स्तुतियोंसे चैत्यवंदन किया जाता है। इन तीनों भेदों के चैत्यवंदनमें स्तवन स्तुति आदि पाठ शुद्धं अर्थ विचारणापूर्वक बोलना चाहिये / अशुद्ध और उपयोग रहित बोलनेसे उसका यथार्थ फल नहीं मिलता। मिठाई बहुत मीठी होती है लेकिन उसमें कङ्कर या धूल पडी