________________ श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह 27 खन करे अथवा अकेला स्वस्तिक करे यहां पर ऐसी भावना होनी चाहिये___"हे नाथ चार गति के भ्रमण को हठा कर मुझे अखंडपद (मोक्षस्थान) दीजिये जिससे जन्म जरा मरण वाले संसार में मुझे फिर भ्रमण करना न पडे" इसके बाद शक्कर, ताजी मिठाई विगैरह नैवेद्य चढावे और मनमें भावना करे___"हे दीन दयाल ! जैसे इस आहार का त्याग कर आपने अणाहारी पद प्राप्त किया वैसे मुझे भी. यही पद प्राप्त हो" इसके बाद श्रीफल सुपारी विगैरह फल चढा कर ऐसी भावना करे "हे कृपालु स्वामिन् ! यह फल आपके चरणों में रखकर मैं यही चाहता हूं कि मुझे उत्तम मोक्ष रूपी फल जल्दही प्राप्त हो" इस तरह क्रमवार अष्टद्रव्य चढाने के बाद और भी बादाम, पिस्ता,इलायची,लवंग आदि मेवा चढाना,अशरफी रुपया पैसा चढाना, आरती और मंगलदीप करना, बाजे बजवाना इत्यादि सब अग्रपूजा में गिना जाता है। भाष्य में भी कहा है"गंधव्व-न-वाइय-लवणजलारत्तिआइदीवाई। जं किंचं सव्वंपि उ, ओअरई अग्गपूजाए / 1 // " ___अर्थात्-"गान, नाच, वादित्र, लवणजल, आरती और मङ्गलदीपक आदि जो कुछ पूजा कर्तव्य है उन सबका अग्रपू