________________ 262 जिनपूजाविधि / . "हे प्रभो ! ये उत्तम सुगंधी फूल जैसे सुगंध से भरे हुए हैं वैसेही मेरे विचार समकित रूप सुगंध से भरपूर हों" यहां पर ध्यान रहना चाहिये कि जल चंदन पुष्प और अंगी विगैरह की पूजा को अंगपूजा कहते है, कारण कि उक्त जलादि पदार्थ भगवान् के शरीर पर चढाये जाते हैं। . धूप दीप अक्षत नैवेद्य और फल पूजा अग्रपूजा कही जाती है। ...... इस अग्रपूजा में प्रथम धूप अगरबत्ती या दशांग धूप का करे, उस वक्त मन में भावना करे. "हे प्रभो ! इस धूपको अग्नि में डालने से जल कर इसका धुंआ ऊर्ध्व गमन करता है इसी तरह मेरी आत्मा के साथ लगे हुए कर्म जल कर मेरी आत्मा ऊर्ध्व गमन करो। अर्थात् मोक्षगति को प्राप्त हो".. धूप करने के बाद पवित्र घीका दीपक करे उस वक्त यह भावना होनी चाहिये- "हे त्रिलोकीनाथ ! यह दीपक जैसे अन्धकार को दूर कर प्रकाश करता है इसी तरह मेरी आत्मा में रहा हुआ अज्ञान रूप अंधकार दूर हो और आत्मा केवलज्ञान से प्रकाशमान हो" इसके बाद अक्षत (चावल) से बाजोठ पर अष्टमंगल (1 दर्पण 2 भद्रासन (सिंहासन) 3 वर्धमान 4 कलश 5 श्रीवत्स 6 मीनयुगल 7 स्वस्तिक 8 नंद्यावर्त) इनका आले