________________ - श्रीजैनज्ञान-गुणसंग्रह मलमूत्रादिनिर्माणा-दुत्सृष्टानि कृतानि च // 3 // ग्रंथिमादिचतुर्भेदैः, पुष्पैः सद्यस्कसौरभैः। निजान्यहृदयानन्द-दाथिनी कुरुतेऽर्चनाम् // 4 // " तात्पर्य-"जो सूखे हों, जमीन पर गिरे हुए हों, जिनकी पंखडियां खंडित हों, खराब चीज के स्पर्शवाले हों, पूरे तौर से न खिले हों, कीडों से काटे हुए हों, छिले हुए हों, वासी हों, जिन पर मकडी का जाला लगा हो, खराब बास वाले हों, सुगंध रहित हों, खट्टी बास वाले हों, मलमूत्र करते समय पास रहने से छोड दिये गये हों ऐसे फूलों से देव की पूजा न करे। इनके विपरीत 1 ग्रंथिम ( गुंथे हुए माला आदि) 2 वेष्टिम (किसी आकार में वींटे हुए) 3 पूरिम (नकसी के रूप में बने हुए), 4 संघातिम (ढगले के रूप में बने हुए ) इन चार प्रकार में से किसी भी प्रकार के ताजे और खुशबूदार फूलों से पूजा करे। ये फूल सूर्य उदय होने के पहले नहीं लाने चाहिये / अंधेरे में जीवजंतु का उपयोग नहीं रहता / लाये हुए फूलों को सुई से छेदना नहीं चाहिये, और उनकी पांखडियां नहीं तोडना चाहिये / वे ज्यों के त्यों अखंड ही चढाने चाहिये जिससे जयणा धर्म का पालन होता रहे। अङ्ग-अग्रपूजा विषयक भावना इस तरह-जयणा और विवेकपूर्वक लाये हुए फूलों से पूजा कर इस मुजब भावना करे