Book Title: Jain Dharm me Tap Swarup aur Vishleshan
Author(s): Mishrimalmuni, Shreechand Surana
Publisher: Marudharkesari Sahitya Prakashan Samiti Jodhpur
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रागस्स दोसस्स एगंतसोक्खं
जैन धर्म मे तप
य
सखएणं
समुवेई मोक्ख 12
- जब आत्मा के समस्त अज्ञान और मोह दूर हट जाते हैं, निरावरण रूप केवलज्ञान प्राप्त हो जाता है, जिसके प्रकाश मे समस्त लोकालोक हथेली की रेखाओ की तरह जाना देखा जाता है, और आत्मा के घोर शत्रु, रागद्वेष का क्षय हो जाता है, तो फिर आत्मा को एकात सुखरूप मोक्ष प्राप्त करने में कोई समय नही लगता ।
इन्ही तीन मार्गों की चर्चा करते हुए आचार्य उमास्वाति ने कहा हैसम्यक् दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्ष मार्गः ।
तत्त्वार्थ सूत्र का यह पहला ही सूत्र है, इसी पर समूचे जैन दर्शन रूप महल की नीव टिकी है । क्योकि जब तक सम्यक् दर्शन नही होता, तब तक ज्ञान भी सम्यक् नही होगा । मुख्य वस्तु मन का विश्वास है, आस्था है । आस्था सच्ची है, तो ज्ञान भी सच्चा है, आस्था ही झूठी है, तो समझलो नीव खोखली है । विना आस्था का मनुष्य विना दस्तखत का पत्र है । विना हस्ताक्षर का चैक है । चैक चाहे एक लाख रुपये का हो, आप बैंक मे ले जाकर दे देंगे तो बैंक आपको पैसा दे देगा, पर कव ? जब उस पर हस्ताक्षर सही होगे । यदि चैक देने वाले का हस्ताक्षर सही नही होगा तो बैंक आपको वंरग ही लौटा देगा, एक पैसा भी नही मिलेगा ।
तो यही बात आस्था की है, सम्यक् दर्शन जब हो जाता है, तो ज्ञान भी सम्यक् होता है, और तब जो आचरण किया जाता है, वह मोक्षरूप फल भी देने वाला होता है, तो ये तीन मार्ग वताये है मोक्ष के -- सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र ।
मोक्ष साधना के मार्ग मे ज्ञान दर्शन -चारित्र इन तीनो की कितनी घनिष्ठता है, तथा तीनो किस प्रकार एक दूसरे के पूरक हैं, इस बात को कई युक्तियो से समझाया गया है । जैसे
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उत्तराध्ययन ३२२ २ तत्त्वार्थ सूत्र ९।१