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जैन आगम ग्रन्थों में पञ्चमतवाद
निर्वाण तिथि 526 स्वतः आ जाती है और 72 वर्ष की उम्र से 599 ई. पूर्व से 526-527 लगभग समय आ जाता है।
एक अन्य प्रसंग में वे S.B.E. के Vol. XLV (45), 1894 जो प्रथम खण्ड से दस वर्ष बाद अनुदित किया गया उन्होंने इसी प्रसंग को फिर दोहराया। उसकी भूमिका में एक और प्रसंग मिलता है, जो कि ई.पू. 526 की निर्विवाद पुष्टि करता है। वे लिखते हैं- “कौशिक गोत्रीय छलुय रोहगुप्त ने, जो कि जैन धर्म का छठा निहव था, वीर निर्वाण के 544 वर्ष बाद अर्थात् ई. सन् 18 में त्रैराशिक मत की स्थापना की।"। भद्रबाहु द्वितीय (5-6ठी ई. शताब्दी) उल्लेख करते हैं कि भगवान् महावीर की सिद्धि प्राप्ति के पांच सौ चौवालीस वर्ष के पश्चात् अंतरंजिका नगरी में त्रैराशिकवाद की उत्पत्ति हुई (आवश्यकनियुक्ति, 1.487/11, जैन विश्वभारती प्रकाशन [2])। यहाँ पर भी 544 से 527 निकालने पर ई.सन् 18 का समय आता है।
दूसरी समीक्षा का स्थल 'बुद्ध और महावीर का निर्वाण' नामक उनका लेख है। यह लेख सर्वप्रथम जर्मनी की एक शोध पत्रिका के 26वें भाग में 1930 में प्रकाशित हुआ। इस लेख का गुजराती अनुवाद 'भारतीय विद्या' नामक शोध पत्रिका में 1944 में वर्ष-3, अंक-1 जुलाई में प्रकाशित हुआ। जिसका हिन्दी अनुवाद कस्तूरमल बांठिया द्वारा होकर 'श्रमण' पत्रिका में 1962 में वर्ष-13, अंक 6-7 में प्रकाशित हुआ। जैकोबी के इस लेख का निष्कर्ष है कि बुद्ध का निर्वाण ई.पू. 484 में हुआ था तथा महावीर का निर्वाण ई.पू. 477 में हुआ था। निष्कर्ष महावीर बुद्ध से 7 वर्ष बाद निर्वाण को प्राप्त हुए और आयु में उनसे 15 वर्ष छोटे थे। इस प्रकार जैकोबी के अनुसार भगवान महावीर की तिथि निश्चित ही 549/48 B.C. और 477/76 B.C. के बीच है।' उनकी इस मान्यता के पीछे क्या धारणा रही, यह स्पष्ट नहीं किया है।
1. "Rohagutta of the Kausika Gotra, with whom originated the sixth schism of
the Gainas the Trairāśikamatam in 544 A.V.(18 A.D.)" Sūtrakstānga, (Jain Sutras, Part-II) Hermann Jacobi, S.B.E., Vol. XLV (45),
Introduction, p. XXXVII (37). 2. मुनि नगराज, आगम और त्रिपिटक : एक अनुशीलन (खण्ड-1, इतिहास और परम्परा), कॉन्सेप्ट
पब्लिशिंग कम्पनी, दिल्ली, [प्रथम संस्करण, 1969], संशोधित संस्करण, 1987, पृ. 45. 3. ......Jacobi thinks that Mahāvīra's date must be between 549/48 B.C. and 477/
76 B.C. Jacobi wants to bring down the date of Mahāvīra very near to Lord Buddha who is a contemporary of Lord Mahāvīra. S. R. Banerjee, Introducing Jainism, p. 15.