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चरणानुयोग
संयतालि की धर्मावि में स्थिति
सूत्र ६५-६६
प.-रइया गते! कि धम्मे ठिया? अधम्मै ठिया? प्र०-हे भदन्त ! नैरयिक धर्मस्थित है ? अधर्मस्थित है ? धम्माधम्मे ठिया?
धर्माधर्म स्थित है? उ.-गोयमा । गैरइया नो घम्मे हिया, अधम्मे ठिया,
नोउ.-.--गौतम ! नैरयिक धर्मस्थित नहीं है, अधर्मस्थित है, धम्माधम्मे ठिया ॥॥
धर्माधर्म स्थित नहीं है। १०-असुरकुमारा-जाव-पणियकुमार गंभंते ! कि धम्मे -हे भदन्त ! असुरकुमार-यात्-स्तनितकुमार
ठिया ? कि अधम्मे लिया ? कि धम्माधम्मे दिया? धर्मस्थित है ? अधर्मस्थित हैं ? धर्माधम स्थित है? उ.-गोयमा! असुरकुमारा-जाव-नियकुमारा नो घरमे उ०-गौतम ! असुरकुमार-पावत्-स्तनितकुमार धर्म
ठिया, अधम्मे ठिया, नो धम्माघम्मे ठिया। स्थित नहीं है, अधर्मस्थित है, धर्माधर्मस्थित नहीं है । प.-पुडबीकाइया-जाय-चरिबिया पं भंते ! कि धम्मे प्र.-हे भदन्त ! पृथ्वीकायिक-यावत्-चतुरिन्द्रिय जीव
ठिया ? अधम्मे हिया धम्माधम्मे ठिया? धर्मस्थित है ? अधर्म स्थित है ? धर्माधर्मस्थित है ? उ.-गोयमा ! पुहवीकाइया-जाब-चरिबिया नो धम्मे ठिया, उ.-गौतम ! पृथ्वीकायिक-यावत--चतुरिन्द्रिय जीव
अधम्मे ठिया, नो धस्माधम्मे लिया ॥६॥ धर्मस्थित नहीं है. अधर्मस्थित है. धर्माधर्मस्थित नहीं है। 4०-परिदियतिरिक्ष जोणिया मते ! कि धम्मे ठिया? प्र.-हे भदन्त ! बन्द्रिय तिर्यम् योनिक जीव धर्मस्थित अधम्मे ठिया धम्माधम्मे ठिया ?
है ? अधर्म स्थित है ? धर्माधर्मस्थित है ? उ.--गोयमा ! चिनियतिरिक्ख जोणिया नो धम्मे ठिया, उ... गौनम ! पंचेन्द्रिय तियंग योनिक जीव धर्मस्थित नहीं अधम्मे ठिया, धम्माधम्मे वि ठिया ।।।
है, अधर्मस्थित है, धर्मानमस्थित है । १०–मणस्सा णं भंते ! कि धम्मे ठिया ? अधम्मे ठिया? प्र-. है भदन्त ! मनुष्य धर्मस्थित है ? अधर्म स्थित है? धम्माधम्मे ठिया ?
धर्माधम स्थित है? उ-गोएमा ! मस्सा घम्मे वि ठिया, अधम्मे विठिया, उ०-गौतम ! मनुष्य धर्म स्थित है, अधर्म स्थित भी है, धम्माधम्मे विठिया ॥५॥
धर्माधर्म स्थित भी है। ५०-दागमंतर- जोइसिया ...वेमाणिया मते ! कि घम्मे प्र-हे भदन्त ! बाणभ्यंतर-ज्योतिषिक, वैमानिक धर्म
ठिया ? अधम्मे ठिया? धम्माधम्मे ठिया? स्थित है ? अधर्मस्थित है ? धर्माधर्मस्थित है ? उ०—कीयमा ! याणमंतर-जोइसिया प्रमाणिया नोउ -गौतम ! वाणव्यंतर, ज्योतिषिक, वैमानिक धर्मस्थित धम्मे ठिया, अधम्मे डिया, नो धम्माधम्मे ठिया ॥८॥ नहीं है, अधर्मस्थित है, धर्माधम स्थित नहीं है।
-वि.सं. १७, ३. २, सु. १-६ बुप्पडियारा सुप्पडियारा
प्रत्युपकार दुष्कर, प्रत्युपकार सुकर६६. सिहं उपडियारं समणाउलो ! तं जहा--
६६. हे आयुष्मन् श्रमण ! इन तीनों का प्रत्युपकार दुष्कर हैअम्मापिउणो, भट्ठिस्स, धम्मायरियस ।
(१) माता-पिता का, (२) भर्ता-स्वामी का, (३) धर्माचार्य
१. संपातो वि य गं फेद पुरिसे, अम्मापियरं सयपाग-सहस्स- (१) कोई पुरुष प्रतिदिन प्रातःकाल में माता-पिता के शरीर पाहि तिल्लेहि अभिगेत्ता, सुरभिणा गंधट्टएणे उबट्टिता, पर शत सहम पाक तेल मलकर सुगन्धित जल से स्नान कराता तिहिं उगेहि मज्जावित्ता, सध्यालंकार-विभूसियं करता, है, सालंकार से विभूषित कर अट्ठारह प्रकार का सरस भोजन मान्न थालोपागसुद्ध अट्ठारस-वंजणातलं भोपणं भोया- कराता है और उन्हें जीवन पर्यन्त अपने कन्धे पर उठाये फिरता वेत्ता जावज्जीवं पिद्विवसियाए परिवहेज्जा, तेणावि है-इतना करने पर भी वह अपने भाता-पिता का प्रत्युपकार तस्स अम्गपिउस्स दुष्परियारं भयह ।
नहीं कर पाता है। अहे से तं अम्मापियरं केवलिपण्णते धामे आघबहला -यदि उन्हें केवलीप्रज्ञप्त धर्म प्रज्ञापित करता है, प्ररूपित पणवत्ता परवत्ता ठावइत्ता मवइ, तेणामेव तस्स करता है या उन्हें धर्म में स्थिर करता है, तो उनका प्रत्युपकार मम्मापिउहस सुप्पडियारं भवाह समणाउसो!
करने में समर्थ होता है।