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सत्र २२-२५
बाचार्य के लिए विना आहार करने का प्रायश्चित्त सूत्र
चारित्राचार : एषणा समिति
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आयरिय अदत्त आहार परिभुजणस्स पाधाञ्छत सुतं- ॐवार के दिए बिना अाहर करने का प्रायश्चित्त सूत्र२२. जे भिक्खू आयरिएहि अदिपर्ण आहारेह, आहारतं वा २२. जो भिक्षु आचार्य के द्वारा दिये बिना आहार करता है, साइक्जा ।
करवाता है, करने वाले का अनुमोदन करता है। त सेवमाणे आवज्जइ मासियं परिहारटाणं उग्धाइयं । उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त
--नि. र. ४, सु. २० आता है। पत्ताणं आहार-करमाणस्स पायच्छित्त सुत्तं -
पत्रों का आहार करने का प्रायश्चित्त सुत्र२३. भिषम् पिउमंद-पलासयं वा, पडोल-पलासयं बा, जिल्ल- २३. जो भिक्ष नीम्व-नत्र, पटन-पत्र, बील्व-पत्र को अचित्त शीर
पलासिय बा, सीओदग-वियडेण था, उसिणोदग-चिपळेण वा जल से या अचित्त उष्ण जल से धो-धोकर आहार करता है. संफाणिय-सफाणिय आहारेड, महारत वा साइजइ। करवाता है, करने वाले का अनुगोदन करता है। त सेवमाणे आवज्जइ मासिय परिहारट्राणं उग्धाइयं । उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
-नि.उ. ५, सु. १४ आता है। गिहिमत्ते भुजमाणस्म पायच्छित सुत्तं --
गृहस्थ के पात्र में आहार भोगने का प्रायश्चित्त सूत्र - २४. जे भिक्षु गिहिमते भुंजाइ, मजतं वा साइजद्द । २४. जो भिजु गृहस्थ के पात्र में आहार करता है, करवाता है.
करने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवाइ चाउम्मासियं परिहारटुाणं उग्धाइयं । उसे चातुर्मासिक उदधातक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त
-नि.उ. १२, सु. १० आता है। पुढवी आइए असणाइ गिक्खवणस्स पायच्छित सुत्ताई- पृथ्वी आदि पर अशनादि रखने के प्रायश्चित्त सूत्र . २५. जे भिक्खू असणं वा-जाव-साइम वा पुढचीए णिक्षियइ, २५. जो भिक्षु अगन--यावत्--स्त्राद्य पदार्थ भूमि पर रखता णिक्खिवंतं वा साइजह ।
है, 'रखवाता है, या रखने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू असणं चा-जाव-साइमं वा संथारए णिक्खिबइ, जो भिक्षु अशान-यावत् - स्वाद्य पदार्थ संथारे पर रखता गिमिखवतं वा साइजइ।
है, रखवाता है, सा रखने वाले का अनुमोदन करता है । जे मिक्लू असणं वा-जाव-साइमं वा हासे मिक्खिवर, जो भिक्षु अशन-यावत्-स्वाध पदार्थ छींके आदि ऊँची मिक्खिवतं वा साइज्ज।
जगह पर रखता है. रखवाता है, या रखने वाले का अनुमोदन
करता है। सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उग्धाइयं । उसे चातुर्मासिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है।
-नि. उ. १६, सु. ३४-३६
परिभोगषणा के दोष-१०
पाँच दोष परिभोगैषणा के
संजोयणा पमाणे इंगाले धूम कारणा पढमा नसहि बहिरंतरे वा रसहेउ दन्न संजोगा ।। पिर. नि. गा.६४ १. संयोजना-स्वाद बढ़ाने के लिए दो प्रकार के पदार्थों का संयोग मिलाना । २. अप्रमाण–प्रमाण से अधिक आहारादि लाना या खाना । ३. इंगाल-सरस आहार की सराहना करते हुए खना। ४. धूम निरस आहार की गिन्दा करते हुए जाना। ५. कारण--ठाणांम अ. ६, सु. ५०० में तथा उत्तराध्ययन अ. २६, गा. ३१-३४ में आहार करने के कारण और न
करने के ६ कारण प्ररूपित हैं ।