Book Title: Charananuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 780
________________ ७४८ चरणानुयोग राजा और उनकी रानियों को देखने का प्रायश्चित्त सूत्र परिशिष्ट १ जे मिका (१) पणियगिहंसि वा, (२) परियसा- जो भिनु (१) विक्य झाला (दुकान में, (२) विक्रय गृह संसि वा, (३) कुविगिरमि वा, (४) कुवियसा- (हाट) में, (३) चूना आदि बनाने की शाला में या ४) चूना सि वा एगो एगिस्थिए सद्धि विहारं का करेइ बनाने के गृह में अकेला बकेली स्त्री के साथ रहता है यावत्-जात्र-असमणपाउम्मं कहं कहेड, कहेंतं वा साह- साधु के अयोग्य कामकथा कहता है या कहने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू (१) गोण्सालसि था, (२) गोणगिहंसि जो भिक्षु (१) गौशाला में, (२) गौगृह में, (३) महाशाला वा, (३) महाकुसंसि वा, (४) महागिहंसि वा एगो में या (४) महागृह में अकेला अकेली स्त्री के साथ रहता है एपिरिषए सशि विहारं वा फरेह-जाब-असमण- -पावत्-साहु के अयोग्य कामकथा कहता है या कहने वाले पाउगं कह कह कहेंतं वा साइज्मइ । का अनुमोदन करता है। त सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारदाणं उसे चातुर्मासिक अनुपातिक (परिहार स्थान) प्रायश्चित्त अणुग्धाइयं । नि, उ, ८, सु. १-१ आता है। पृष्ठ ४३२ पृष्ठ ४३२ सूत्र ६४७. इतेहि पंचहि महब्बतेहि पणवीसाहिं य भाव- सूत्र ६४७. इन (पूर्वोक्त) पाँच महानतों और उनकी पच्चीस णाहि संपन्ने अणगारे अहसुत्तं अहाकप्पं, अहा- 'भाजनाओं से सम्पन्न अनगार यथावत, यथाकल्प और यथामार्ग मगं अहातचं सम्मं काएण कासित्ता पालित्ता यथार्थ रूप में इनका काया से सम्यकः स्पर्ण कर, पालन कर. सोहिसा तौरित्ता किट्टित्ता आराहिता अगाए शोधन कर, इन्हें पार लगाकर, इनके महत्व का कीर्तन करके. अणुपालित्ता भवति । __ आराधना कर, भगवान् को आज्ञा के अनुसार इनका पालन करने -आ. सु. २, म. १५, सु. ६२ वाला होता है । पृष्ठ ४३५ पृष्ठ ४३५ सूत्र ६५६. (ख) ते अगवकममाणा, अपतिवातेमाणा. अपरिग्गहे. मुत्र ६५६. (ख) वे काम-भागों को साकांक्षा न रखने वाले, माणा, णो परिगहावंति सध्यावति घणं लोगसि, प्राणियों की हिमा न करने वाले और परिप्रह नहीं रखने वाले ऐसे निर्ग्रन्थ मुनि रामग्र लोक में अपरिग्रहवान् होते हैं। णिहाय दंडं पाहि पावं कन्म अकुम्बमाणे, एस जो प्राणियों के लिए दण्ड का त्याग करके हिसादि पाप कर्म महं अगये विवाहिते। नहीं करता, उसे ही महान नियंग्य कहा गया है। ओए जुदमस्स खेतपणे, उववायं चयणं च णच्चा। राग-द्वेष से रहित छु तिमान् अर्थात् संयम का ज्ञाता, जन्म - आ. सु., अ.८,.३, सु. २०६ (ख) और मरण के स्वरूप को जानकर शरीर की भनित्यता का अनुचिन्तन करें। पृष्ठ ४६२ गृष्ठ ४६२ राईणं तह तेसि इत्थियाणं अवलोयणस्म पायच्छित राजा और उनकी रानियों को देखने के प्रायश्चित्तत्र सुत्ताईसूत्र ७१०. (ख) जे मिक्खू रणोतियाणं मुदिया मुखाभि- सूत्र ७१०. (ख) जो भिक्षु शुद्ध वंशज मूर्द्धाभिषिक्त क्षत्रिय राजा सित्तरणं आगच्छमाणाण वा णिगच्छमाणाण वा के आने जाने के समय उन्हें देखने के संकल्प से एक कदम भी पयमवि चक्षुईसण-डियाए अभिसंधारेइ अभि- लता है या चलने वाले का अनुमोदन करता है । संघारत वा साइम्जा। जे भिक्खू रणो खत्तियाण मृदियाग मुडानि- जो भिक्ष शुद्ध वंशज मूभिषिक्त धत्रिय राजा की सर्व सित्ताणं इत्थीओ सम्वालंकार-विभूसियाओ पयमवि अलंकारों से विभूषित रानियों को देखने के संकल्प से एक दम चपखुर्वसण-वडिपाए अभिसंधारेइ अभिसंहारत वा भी चलता है या चलने वाले का अनुमोदन करता है। साइजह । त सेवमाणे आवज्जइ चाउम्भासियं परिहारट्टाणं उसे चातुर्मासिक अनुदघातिक परिहारस्थान) प्रायश्चित्त अणुग्धाइयं । --नि. उ.६, सु. ८-९ आता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 778 779 780 781 782