Book Title: Charananuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 782
________________ 750 बरणानुयोग ओवध सम्बन्धी कीतादि बोवों के प्रायश्चित्त सत्र परिशिष्ट / वा, बहिया णिग्गयाणं असणं वा, जाव-साइम वा अशन-पावत्-स्वाध को ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले पजिग्गाहे, परिग्गाहेंतं वा साइना का अनुमोदन करता है। तं सेवमार्ग पर घाममा परिदामं . उदासिक अनुद्घात्तिक (परिहारस्थान) प्रायश्चित्त उग्घाय। -नि. उ.६.सु.१० आता है। पृष्ठ 560 गृष्ट 560 ओसहस्स कीयाई दोसाणं पायपिछत्त सुत्ताई औषध सम्बन्धी क्रीनादि दोषों के प्रायश्चित्त सूत्रसूत्र 11. (ख) भिक्षु वियर किगड, किणावे की आहट्ट सूत्र 111. (स) जो भिक्षु औषध (किमी रोग विशेष की दवा) देज्जमाणे परिगाहेछ, पसिगाता साइजा। वरीदता है, खरीददाता है या साधु के लिये खरीदकर देने वाले से ग्रहण करता है अयवा ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू वियपामिश्वर पामिन्चावेई, पामिश्च जो भिक्षु औषध उधार लाता है. उधार लिवाता है या राइटर बेजमा परिमाहेर, पशिगाहेंवा उधार लाने वाले से ग्रहण करता है अथवा ग्रहण करने वाले का साइम्जा / __ अनुमोदन करता है। जे मिक्ल बिया परिपट्रा, परिपट्टावेह, परिट्टियं जो मिक्ष औषध को बदलता है बदलवाता है या बदलवा. आहट रेजमा परिग्गाहेइ. पडिग्गानं वा वर लाने वाले से ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुसाइना। मोबन करता है। मे भिम विय अच्छेज्ज, अणिसिदठं, अमिह जो भिक्षु छीन कर लाई हई, स्वामी की आजा विता आहट बेग्जमा पडिग्गाहेड, पडिग्यातं पा लाई हुई अमेधा सामने लाईई औषध को ग्रहण कारता या साहज्जा। ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। मे भिक्स गिलागस्स अदाए परं तिथं बियर- जो भिक्षु ग्लान के लिए तीन दत्ति (हीन मात्रा से अधिक दत्तो पडिग्गाहेर पडिग्गाहेंतं वा साइजा। औषध ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। जे मिलू विपर गहाय गामाणुगाम वाया जो भिक्षु औषध माय में लेकर प्रामानुग्राम विहार करता है बुइग्जत वा साम्जद। ___ या विहार करने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू वियां गालेह पालाइ गालिपं आहट्ट जो भिन्न औषध को स्वयं गालता है, गलवाता है या गालदेजमागं परिपाइ परिणाहतं वा साइजान कर देने वाले से ब्रह्म करता है अथवा प्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवजा चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं उसे चातुर्मासिक उद्घातिक (परिहारस्थान) प्रायश्चित्त जग्वाह -नि उ. 16. मु.१-७ आता है। RER

Loading...

Page Navigation
1 ... 780 781 782