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वस प्रकार की समाधि
चारित्राचार : पुतिर्णन
सूत्र ३१८-३२२
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से अण्णवहाए, अपणपरियावाए, अग्णपरिमाहाए, जणवय- बह (तृष्णा की पूर्ति के हेतु व्याकुल मनुष्य) दूसरों के वध बहाए, जणवयपरियायाए, जणययपरिग्गहाए ।
के लिए दूसरों के परिताप के लिए और दूसरों को परिग्रहण के -आ. सु. १, अ. ३, २.२, सु. ११८ लिए तथा जनपद के वट के लिए, जनपद के परिताप के लिए
और जनपद को परिग्रहण के लिए प्रवृत्ति करता रहता है । वसविहा समाहो
दस प्रकार की समाधि३१६. सविधा समाधी पण्णता, तं जहा--
३१६ समाधि दस प्रकार की कही गई है। जैसे(१) पाणातिवायबेरमणे ।
१. प्राणातिपात-विरमण। (२) मुसावायवेरमणे।
२. मृषावाद-विरमण। (8) आदिणाणताणावेरमणे ।
३. अदत्तादान-विरमण । (४) मेहणवेरमणे ।
४. मैथुन-विरमण । (५) परिग्गहवरमगे।
५. परिग्रह-विरमण। (६) इरियासमिति ।
६. ईयासमिति । (७) मासासमिति ।
७. भाषासमिति । (८) एसणासमिति ।
८. एषणासमिति । (8) आयाण-मंड-मत्त-णिपदेवणासमिति ।
६. आदान भाण्ड अमत्र (पात्र) निक्षेपणा समिपि । (१०) उच्चार - पासवण -शैल-सिंघाणग जल्स-परिटायपिया १०. उच्चार प्रसवण खेर सिंघाण-जल्ल-परिष्ठापना समिति ।
-ठाणं अ. १०, सु. ७११ समिति । दसविहा असमाही
दस प्रकार की असमाधि३२०. दसविधा असमाधी पण्णता, तं जहा--
३२०. असमाधि दस प्रकार की कही गई है । जैसे(१) पाणातिवाते ।
१. प्राणातिपात-अविरमण । (२) मुसावाए।
२. मृषावाद-अविरमण । (३) अविण्णाया।
३. अदत्तादान-अविरमण। (४) मेहणे ।
४. नथुन-अविरमण ! (५) परिजगहे।
५. परिग्रह-अविदमण। (६) इरियाऽसमिती।
६. इया-असमिति (७) भासाऽसमिती।
१७. भाषा-असमिति । (८) एसणाऽसमिती।
. एषणा-असमिति । (६) आयाण-भंड-मत्त-गिक्खेवगाऽसमिती ।
.. आदान-भाण्ड-अमत्र (पात्र) निक्षेप की असमिति । (१०) उच्चार-पासवण-खेल सिंषाणा-जल्ल-परिट्रायणिया- १०. उच्चार-प्रत्रवण खेल सिंघाण-जल्ल-परिष्ठापना की ऽसमिती ।
-ठाणे. अ.१०,सु.७११ असनिति । मणगुरायाए फलं
मन को वश में करने का फल३२१. १०--मणगुत्तयाए णं भन्ने । जोवे कि जणयह ? ३२१. प्रा-भन्ने 1 मनोगुप्तता (कुशल' मन के प्रयोग से जीव
क्या प्राप्त करता है? उ.--मणगुत्तयाए णं जीधे एगग्ग जणयह । एगग्गचित्रंण उ-मनो-गुप्तता से वह एकाग्रता को प्राप्त होता है। जीवे मणगुत्ते संजमाराहए भवइ ।
एकाग्रचित्त वाला जीव (अशुभ संकल्पों से) मन की रक्षा करने
-उत्त अ. २६, सु. ५५ वाला और संयम की आराधना करने वाला होता है। मणसमाहारणयाए फलं
मनसमाधारणा का फल३२२.५०-मणसमाहारणयाए णं भरते जीवे किजणया? ३२२.प्र-मन्ते ! मन-समाधारणा (मन को आगम माथित
भावों में भली-मति लगाने) से जीव क्या प्राप्त करता है?