Book Title: Charananuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 772
________________ ७४० ] चरणानुपन पृष्ठ ८० सूत्र ११३. रायाणो राममच्चा य माहना अबुव खत्तिया । हो ? | खि सोमिओ तो सह सिखाए मुसमाउलो, आइक्वक विक्णो ॥ ३ ज्ञान की उत्पत्ति के कारण fa ! मत्यकामा निर्मााणं सुणेह मे । आयारगोयरं भीमं सयलं दुरहिट्टियं ॥४॥ नन्नत्थ एरिसं वृत्तं जं लोए परमदुच्चरं । विद्वानभाइन्स न भूयं न भविरह ||५ का अखंड- फुडिया कायम्वर, तं सुणेह जहा तहा ॥ ६ ॥ ॥ - दस. अ. ६ ग्रा. १-६ पृष्ठ ५६ णाणस्स उपपत्ति अणुपत्ति-कारणा ८४. (ख) वो ठाणाई अपरियाता आया जो केवलमामि गिरोह जहा (१) आमेन (१) परिव दोहामा परियाता आया केवलमा भिथियो उपसंहा (१) आरंभेचे (२) परिम्हे चैव । -अ. अ. २, उ. १, नु. ५४-५५ चारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा(१) बंदति णाममेगे, णो वंदावेति, (२) वंदावेति णाममेगे, पो बंदति, (३) एगे दिव (४) एगे जो बंदति । धत्तारि पुरिसजाया पष्णता, तं जहा-(२) सारे गाममे मी सकारा (२) सकारावे नाम, भोसरे (३) एगे सबका रेह वि, सवकाशवेध वि (४) ए पो रेड को सकारा तारि पुरिसजाया पण्णत्ता, तं जहा(१) सम्मामेति भाग (२) सम्माणायेति नामसि परिशिष्ट १ राजा और राजमन्त्री, ब्राह्मण और क्षत्रिय निश्चलात्मा होकर भवन्! आपका आभार-गोचर है?" ऐसा पूछे जाने परदेशात शन्त सर्वप्राथियों के लिए सुखावह शिक्षाओं से समायुक्त और गरम विचक्षण गणी उन्हें बढ़ते है। हे राजा आदि जनो ! धर्म के प्रयोजनभूत मोक्ष की कामना वाले निर्ग्रन्थों के भीम (कायर पुरुषों के लिए) दुरधिष्ठित और सम्पूर्ण उपचार गोवर को मुझ से सुनो। जो लोक में अत्यन्त दुश्चर है, वह श्रेष्ठ आचार जिन शासन के अतिरिक्त कहीं नहीं कहा गया है। सर्वोच्च मोक्ष स्थान को प्राप्त कराने वाला ऐसा आचार अन्य मत में न कभी था और न ही भविष्य में होगा । बालक हो या बुद्ध, अस्वस्थ हो या स्वस्थ, सभी को जिन गुणों का अर्थात् आचार-नियमों का पालन अखण्ड और अस्फुटित रूप से करना चाहिए, वे गुण यथातथ्यरूप में मुझ से सुनो। पृष्ठ ५६ ज्ञान की उत्पत्ति अनुत्पत्ति के कारण सूत्र ८४ (ख) आरम्भ और परिग्रह इन दो स्थानों को जाने और छोड़े बिना आत्मा विशुद्ध अभिनिवोधिक ज्ञान को प्राप्त नहीं करता । आरम्भ और परिग्रह इन दो स्थानों को जानकर और छोड़कर आत्मा विशुद्ध आभिनिबोधिक ज्ञान को प्राप्त करता है । पृष्ठ ८० सूत्र ११३. पुरुष चार प्रकार के होते हैं, यथा- (१) कुछ पुरुष बन्दना करते है, किन्तु मरते नहीं; (२) कुछ पुरुष बन्द करते है, करते नहीं, (३) कुछ पुरुष वन्दना करते भी है और करवाते भी है, (४) कुछ पुरुष न वन्दना करते हैं और न करवाते हैं । पुरुष चार प्रकार के होते हैं, यथा (१) कुछ पुरुष सत्कार करते हैं, किन्तु वाले नहीं (२) कुछ पुरुष सत्कार करवाते है, किन्तु कत नहीं (३) कुछ पुरुष सरकार करते भी हैं और करवाते भी है. (४) कुछ पुरुष न सरकार करते हैं और न करवाते हैं । पुरुष चार प्रकार के होते हैं, यथा (१) कुछ पुरुष सम्मान करते हैं कि करवाते नहीं, (२) कुछ पुरुष सम्मान करवाते हैं, किन्तु करते नहीं,

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