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परिशिष्ट १
वाचना देने मेने के प्रायश्चित्त सत्र
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तं सेवमाणे आवजह चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं अणु घाइयं। उसे चातुर्मासिक अनुद्घातिक (परिहारस्थान) प्रायश्चित्त
-नि, उ. ७, सु. ८५-८८ आता है। वायणा आयाण-पयाण पायच्छित्त सुत्ताई
घाचना देने लेने के प्रायश्चित्त सूत्रजे भिक्खू माउग्मामरस मेट्रणज्यिाए सम्झायं वाएइ, धाएंतं जो भिक्ष स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से सूत्रार्थ था साइज्जद।
की वाचना देता है या वाचना देने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू माजग्गामस्स मेहगवटियाए सज्मायं पडिच्छद जो भिक्ष श्री के साय मैथुन सेवन के संकल्प से सूत्रार्थ परिच्छंतं या साइज्ज।
की दाघमा लेता है या वाचना लेने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहास्दाणं अणुघाइयं । रसे चातुर्मासिक अनुद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
–नि उ.७, सु. ८९-६० आता है। आकारकरण पाच्छित्त सुतं
आकार करने का प्रायश्चित्त सूत्र . जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए अग्रणयरेणं इंचिएणं जो भिक्ष स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प में किसी भी आकारं फरेड, करेंतं वा साइजा।
इन्द्रिया से (अर्थात् आँस्त्र हाथ आदि किसी भी अंगोपांग से) किसी भी प्रकार के आकार को बनाता है या बनाने वाले का
अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मासियं परिहारहाण अणुग्घाइयं। उसे चातुर्माशिक अनुद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त)
-नि.उ. ७. सु. ६१ आता हैं। पृष्ठ ४१६
पृष्ठ ४१६ मूत्र ६१५. (ख) जे भिक्खू माउम्पामस्स मेणबडियाए अण्णयरं सूत्र ६१८. (स) जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से
तेइच्छं आउट्टइ, बाउत वा साइम्जा। किसी प्रकार की चिकित्सा करता है या करने वाले का अनुमोदन
तं सेवमाणे आवजह चाउम्मासियं परिहारहाणं उसे पातुर्मासिक अनुद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त अणुग्धाइयं ।
-नि. उ. ७, सु. ७६ आता है। पृष्ठ ४१८
पृष्ठ ४१५ अंग सवालणां पायच्छित्त सुर---
अंग संचालन का प्रायश्चित्त सूत्रसूत्र ६२३. (ख) जे मिक्खू माउणामस्स मेहुणजियाए अक्वंसि सूत्र ६२३. () जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से
था, उरुसी वा, उपरसि वा, थर्णसि वा गहाय न्त्री के अक्ष, ऊरु, उदर या स्तन को ग्रहण कर मनास्ति करता संचालेह, संचालतं वा साइज्जइ ।
है या संचालित करने वाले का अनुमोदन करता है । तं सेवमाणे आवाजइ चाउम्मासियं परिहारट्टाणं उसे चातुर्मासिक अनुदातिक परिहारस्पान (प्रायश्चित्त
अणुग्याइयं । -नि.उ.७, सु. १३ आता है। पुष्ठ ४२०
वृष्ठ ४२० मेहुण बडियाए बत्थ-करणस्स पायच्छित्त सुत्ताई- मंथन के संकल्प से वस्त्र निर्माण करने के प्रायश्चित्त सूत्रसूत्र ६२६, (ख) जे मिक्खू माउम्गामस्स मेहण बडिपाए- सूत्र ६२६. (ख) जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से . (१) आपणाणि वा,
(१) मूषक आदि के चर्म से निष्पन्न दस्त्र, (२) सहिणाणि वा,
(२) सूक्ष्म वस्त्र, (३) सहिणकल्लाणागि वा,
(३) सूक्ष्म व सुशोभित बस्त्र, (४) आयाणि वा,
(४) अजा के मूक्ष्म रोम से निष्पन्न बस्त्र (५) कायाणि वा.
(३) इन्द्रनीलवर्णी कपास से निष्पन्न वस्त्र, (६) सोमियाणि वा,
(६) सामान्य नपास से निष्पन्न सूती वस्त्र,