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सूत्र १३८-१४१
निप्रन्थियों के अकल्पनीय आसन
चारित्राचार : एषणा समिति
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मक्का -संताणग, तहप्पगारं संपारग पहिलेहिय-पडिलेहिय, रहित जाने तो ऐसे संस्तारक को बार-बार प्रतिलेखन तथा पमज्जिय-पमस्जिय, आताविय-आताविय, विणिबुणिय-धिणि- प्रमार्जन करने, मूर्य की धूप दे देकर एवं झाड़ झाड़कर पतनाबुणिय, ततो संजयामेव पच्चपिणेज्मा ।
पूर्वक वापस लौटावे । - आ. सु. २, अ. २, उ. ३. सु. ४५८:
संस्तारक ग्रहण निषेध-८
णिगंथीणं अकप्पणीय आसणाई
निन्थियों के अकल्पनीय आसन-- १३६, नो कप्पद निमावीणं सावस्सयंसि मासणसि आसइतए वा, १३६. निर्घन्धी-साध्वियों को सावश्य (अवलम्बन युक्त) आसन तुट्टिसए था।
पर बैठना एवं शपन करना नहीं कल्पता है । नो कप्पह निराधीणं सविसापंसि पीसि वा, फलगसि वा, निर्ग्रन्थी-साध्वियों को सविधाण (छोटे-छोटे स्तम्भ युक्त)
आसइत्तए वा, तुघट्टितए वा । —कारण उ. ५. सु. ३६-३८ पीठ या फलक पर बैठना एवं शयन नहीं कल्पता है । वोच्चं उगाहं विणा सेज्जासंथारंग गहण णिसेहो- दुसरी बार आज्ञा लिए बिना शय्या संस्तारक ग्रहण का
निषेध१४०. नो कप्पद निग्गंधाण वा, नियोण या, पाबिहारियं वा, १४०. निम्रन्थ-निर्गन्धियों को प्राविहारिक या शय्यातर का शय्या
सागारियस नियंका सेज्जासंचारग बोच्चपि ओग्गहं अण्णुन- संस्तारक दूसरी बार आज्ञा लिए बिना बस्ती के बाहर ले जाना वेता बहिया नीहरित्तए।
नही कल्पता है। नो कप्पड निराधाण वा, निगयीण वा, पाडिहारियं वा, निग्रंन्य निर्ग्रन्थियों को प्रातिहारिक या शय्यातर का शय्यासागारियसंतियं वा सेज्जासंथार सम्वप्पण्णा अप्पिणिता संस्तारक सर्वथा सोप देने के बाद दूसरी बार आज्ञा लिए बिना दोच्चपि ओपगह अणणुनवेत्ता अहिद्वित्तए।
काम में लेना नहीं कल्पता है ।
-वव.उ.८, सु. ६ सेज्जासंचारग पच्चप्पणेण विणा विहार णिसेहो- शय्या संस्तारक लौटाए बिना विहार करने का निषेध१४१. नो कप्पा निर्णयाग वा, निग्गयीण यश पाछिहारियं सेन्जा- १४१. निर्गन्ध और निग्रन्थियों को प्रातिहारिक शय्या संस्तारक संथारयं आयाए अपव्हिटु संपन्यइत्तए ।
ग्रहग करके उसे लौटाये विना विहार करना नहीं कल्पता है। नो कप्पाइ निर्वाधाण वा. निगायीण का मागारियसंतियं निर्गन्ध और निम्रन्थियो को शय्यातर वा शाय्या संस्तारक सेज्जासंथारयं आयाए अविकरण कर संपव्याहत्तए। ग्रहण करके उसे यथावस्थित किये बिना विहार करना नहीं
-कप्प. उ. ३, सु. २४-२५ कल्पता है।