Book Title: Charananuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 755
________________ सूत्र ३०१-३०२ विभिन्न स्थानों में मल-मूत्रादि के परठने का निषेध चारित्राचार : परिठापनिका समिति [४२३ . ... . ... ..... .... . . -...-- वा, घटुंबा, मट्ठबा लित्तं वा, समढेवा, संपधूषितं वा पप्पर छाया है या छत डाली है, उसे सम किया है, कोमल या अण्णतरंसि वा सहप्पगारंसि पंडिलसि णो उच्चार-पामवणं चिकना बना दिया है, उसे तीचा पोता है, संवारा है, धूप आदि बोसिरेज्जा । -आ. सु. २, अ.१०, गु. ६५० पदार्थों से सुगन्धित किया है अथवा अन्य भी इस प्रकार के मारम्भ समारम्भ करके तैयार किया है तो उस प्रकार के स्थंडिल पर भिक्षु मल-मूत्र विसर्जन न करे । विविह ठाणेसु उच्चाराईणं पपिटवणगिसेहो विभिन्न स्थानों में मल-मूत्रादि के परटने का निषेध३०२. से भिक्खू वा भिक्खूणी वा से जं पुण थंडिलं जाणेज्जा-इह ३०२. भिक्षु या भिक्षुणी यदि ऐसे स्थण्डिल को जाने, जहां कि खलु गाहावती वा-जाव-कम्मकरोओ वा, फंदाणि वा-जाव- गृहपति-यावत्-नौकरानियाँ कन्द,-यावत्-हरी वनस्पहरियाणि चा, अंतातो वा बाहि नाहरति चहियाओ वा अंतो तियों को अन्दर से बाहर ले जा रहे हैं या बाहर से अन्दर ले साहरति, अण्णतरंसि वा तहप्पगार सि पंडिलंसि जो उस्चार- जा रहे हैं, अथवा अन्य भी उसी प्रकार की स्थण्डिल पर मलपासवणं वोसिरेन्जा। मुत्र विसर्जन न करे। से भिक्खू वा भिक्खूणी बा मे जं पुण हिल जाणेज्जा-- भिक्षु या भिक्षुणी ऐसे स्थण्डिल को जाने जो कि स्तम्भगृह, संधसि बा, पीडसि वा मंचंसि वा, मातंसि वा, अट्टसि बा, चबूतदा, मचान, माला, अटारी, महल या अन्य भी इस प्रकार पासाचं सि वा, अण्णतरंसि वा, तहप्पगारंसि वा पंडिलंसि णो का कोई स्थान है वहां पर मल-मूत्र विसर्जन न करे। उच्चार-पासवणं बोसिरेज्जा। से भिक्खू वा भिमखूणी वा सेज पुण थंडिलं जाणेज्जा- भिक्षु या भिक्षुणी ऐसे स्थण्डिल को जाने, जो कि सचित्त अणंतरहियाए पुटवीए-जाब-कक्कडासंतागपंसि. अण्णतरंसि पृथ्वी के निकट है. यावत्-मकड़ी के जालों से युक्त है एवं वा, तहप्पगारंसि थंडिलं सि णो उच्चार-पासवणं योसिरेज्जा । अन्य भी इसी प्रकार का स्थण्डिल है वहाँ पर मल-मूत्र विसर्जन न करे। से भिक्खू वा भिक्खूणी या से जे पुणं पंडिलं जाणेज्जा-ह भिक्षु या भिक्षुणी यदि ऐसे स्थण्डिल को जाने कि जहां पर वसु गाहावती या-जाव-कामकरीओ वा कंदाणि वा-जाव- गृहस्थ या भोकरानियों ने कंद-यावत् - हरियाली आदि हरियाणि वा परिसाउँसु वा परिसाउंति या परिसाडिसंति फैलाई है. फैला रहे हैं, फैलायेंगे अथवा अन्य भी इस प्रकारका धा, अण्णतर सि वा तह पगारंसि अंडिलंसि जो उन्नार- स्थन्डिल हो वहां पर नल-मूत्र का त्याग न करे । पासवणं वोसिरेज्जा। से भिक्खू वा भिषयूणी वा से ज पुण यडिल जाणेज्जा-यह भिक्षु या भिक्षुणी यदि ऐसे स्थण्डिल को जाने कि-वहाँ खलु गाहावती वा-जाव-फम्मकरीओ वा. सालीणि वा पर गृहस्थ-यावत् -नौकदानियों ने शाली, बीहि (धान), मुंग, घोहीणि या, मुग्गाणि वा, मामाणि या तिलाणि था, उड़द, तिल, कुलत्थ, जौ और ज्यार आदि बोए हैं, बो रहे हैं कुलत्थाणि बा. जवाणि बा, जवजवाणि वा, परिसुवा, या बोएँगे, अथवा अन्य भी इस प्रकार को स्थण्डिल हो वहाँ पदरंति वा, पइरिस्संति वा. अण्णतरसि वा सहप्पगारंसि मल-मूत्र का विसर्जन न करे। थंडिल सि णो उच्चार-पासवणं वोमिरेजसा । से भिवातू वा भिक्खूणी या से जं पुण थंडिल जाणेज्जा–आमो- भिल या भिक्षुणी यदि ऐसे स्थाण्डिल को जाने कि, जहाँ पर याणि वा, घसाणि बा, भिलुयाणि वा, विज्जलाणि या, कचरे के ढेर हो, भूमि फटी हुई या पोली हों, भुमि पर दरारें खाणुयाणि वा, कहाणि या, पगत्तागि वा, करीणि घा, पड़ी हों, ठूट हों, ईख के इंडे हों, बड़े-बड़े गहरे गड्डे हों, पदुग्गाणि वा, समाणि वा, विसमाणि वा, अण्णतरसि वा गुफायें हों, किले को दीदार हों, सम-विषम स्थान हो अथवा तहप्पगारंसि भंडिलसि पो उपचार-पासवणं वोसिरेज्जा। अन्य भी इसी प्रकार के ऊबड़-खाबड़ स्थण्डिल पर मत्त-मूत्र विसर्जन न करे। से भिक्खू पा भिक्खूणी वा से जं पुण पंडिलं आणज्जा-- भिक्षु या भिक्षणी यदि ऐसे स्थपिडल को भाने, जहाँ माणुसरंधणाणि वा, महिसकरणाणि वा, वसमकरणाणि वा, मनुष्यों के भोजन पकाने के चूल्हे आदि हो, अथवा भैन, बैल, अस्सफरणाणि वा, कुक्फुउकरणाणि था, मक्काकरणाणि वा घोड़ा, मुर्गा या बन्दर, लावक पक्षी, बत्तक, तीतर, कबूतर,

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