Book Title: Charananuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 753
________________ सूत्र २६६-२९६ उपचार-प्रस्त्रवण भूमि के प्रतिलेखन का विधान चारित्रधार : परिष्ठापनिका नमिति [७२१ उच्चार-पासवण भूमि पडिलेहण विहाणं उच्चार-प्रस्रवण भूमि के प्रतिलेखन का विधान--- २६६. से भिक्खू वा, भिक्खूणी वा सभाणे वा बसमाणे वा, गामा- २६६. भिक्षु या भिणी स्थिर वास हो, मासकल्प आदि रहे हों गुगामं इज्जमाणे वा, पुष्षामेव परणस्स उच्चार-पासवण- या प्रामानुप्राम विहार करते हुए कहीं ठहरे हों तो प्रज्ञावान् साधु भूमि पडिलेहेज्जा । को चाहिए कि वह उपचार प्रस्रवण भूमि का प्रतिलेखन करे। केवली बूया-आयाणमेयं । केबली भगवान ने कहा है कि (प्रतिलेखन नहीं करना) कर्म बन्ध का कारण है। अप्पडिलेहियाए उच्चार-पासवणभूमिए, भिक्खू बा भिक्खूथो (क्योंकि) भिक्ष या भिक्षुणी रात्रि में या विकास में अप्रतिवा रातो बा, बियाले बा, उच्चार-पासवर्ण परिदृवेमाणे लेखित भूमि में मल-मूत्रादि का परिष्ठापन करता हुआ फिसल पयलेज्ज वा, पवटेज्ज वा, से तत्य पयलमाणे वा, पवडमाणे सकता है या गिर सकता है। फिसलने या गिर पड़ने से उसके वा हत्थं वा-जाव-इवियजायं लूसेज्जा वा, पाणाणि वा-जाव- हाथ-यावत् -किसी भी अंगोपांग में चोट लग सकती है। वहाँ सत्ताणि वा अभिहणेज वा-जाव-वारोयेजा वा। स्थित प्राण. यावत्-सत्व का हनन हो सकता हे-यावत् वे मर सकते हैं। अह मिफ्लूणं पुस्खोवदिट्ठा-जाव एस अवएसे, जं पुवामेव इसलिए भिसु को पहले से ही यह प्रतिज्ञा यावत्-उपदेश पण्णस्स उच्चार-पासवणभूमि परिलेहेन्जा। दिया है कि प्रज्ञावान् साधु पहले से ही मल-मूत्र परिष्ठापन भूमि -आ सु. २, अ. २, उ. ३, सु. ४५६ की प्रतिलेखना करे। उच्चारण उब्बाहिज्जमाणे करणिज्ज विही मल-मूत्र की प्रबल बाधा होने पर करने की विधि२६५. से भिक्ख या भिक्खूणी वा उच्चारणासवण-किरियाए उच्चा- १७. भिक्षु या भिक्षुणी मल-मूत्र की प्रवल बाधा होने पर अपने हिज्जमाणे सयरस पाचपुंछणस्स1 असतीए ततो पछा पादोश्छनक के अभाव में साधमिम' साधु से उसकी याचना साहम्मियं जाएज्जा। -आ. सु. २, अ. १०, सु. ६४५ करे। उच्चाराईणं परिवण विही-- मल-मूत्रादि को परठने की विधि२९८. से भिक्खू वा, भिक्यूणी वा सयपाततं वा परमाततं वा गहाय २६८. (उच्चार प्रत्नत्रण विसर्जन योग्य स्थण्डिल न मिले तब) से समायाए! एगतमबक्कमेज्जा, अणावायसि, असंलोसि, भिक्षु या भिक्षुणी स्वपात्रक (स्वभाजन) या परणात्रक (ट्नसरे का अप्पपाणंसि-जात्र-मक्कडासंताणयंसि आहारामंसि या उव- भाजन) लेकर उपाश्रय या बगीचे के एकान्त स्थान में चला जाए. स्ससि या ततो संजयामेष उस्मार-पासवणं बोसिरेज्जा। जहां पर कोई आता-जाता न हो और कोई देखता न हो तथा प्राणी यावत्-ककड़ी के जालों से रहित हो, वहाँ यतनापूर्वक मल-मूत्र विसर्जन करे। उच्चार-पासवणं वोसिरित्ता से तमायाए एगतमवक्कमेम्जा विसर्जन करके उस पात्र को लेकर एकान्त स्थान में जाए, अणावायसि-जाव-मक्कडासंताणयंसि अहारामंसि सामरि- जहाँ कोई आता-जाता न हो यावत्-~मकड़ी के जाले न हो, लंसि वा-जाव-अण्णयरसि वा तहप्पगारंसि पंडिलंसि ऐसी वगीचे के पास की भूमि में, दग्य अचित्त भूमि में यावत्अचित्तसि ततो संजयामेव उच्चार-पासवर्ण परिवेन्मा। इसी प्रकार की अन्य अचित्त भूमि में यतनापूर्वक मल-मूत्र का -आ. सु. २, अ. १. सु. ६६७ परिष्ठापन करे। समणसरीर परिक्षण उवगरणगहण विही श्रमण के मृत शरीर को परठने की और उपकरणों को ग्रहण करने की विधि२६१. भिक्खू प राओ वा बियाले वा आहच्च वीसभेज्जा संच २६६. यदि कोई भिक्षु रात्रि में या विकाल में मर जाय तो उस १ 'पाय'छणं"-पादपुरुछनसमाध्यादा ज्वारादिकं कुर्यात् --पादपंछनसमाध्यादिकनिति-टीकाकार ने "पादपुच्छनक" शब्द का अर्थ 'समाधि पात्र आदि' किया है। जो आज भी व्यवहार में "समाधिया" शब्द प्रचलित है। —आ. टीका. सु. १६५ की वत्ति पत्र ४०६ (पृ. २७३) र बगीचे के पास की स्थंडिल योग्य भूमि में । क

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