Book Title: Charananuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 759
________________ सूत्र ३०५ निवि स्थानों पर उच्चार प्रलवण परिष्ठापन के प्रायश्चित सूत्र चारित्राचार : परिष्ठापनिका समिति तं सेवमाणे आवज्जद मासियं परिहारद्वाणं उधाइयं । - नि. उ३, सु. ७१-७६ उच्चार पासवर्ण परिषेद भिक्खू खुडागंस थंडिलंसि परिद्वतं वा साइज्जइ । तं सेवमाणे आवज मासियं परिहारद्वाणं उच्चाइयं । - न . ४, सु. १०४ जे भिक्खू आगंतागारे या आरामागारे या गाहाबड़कुलेसु वा परियावसहेसु वा उच्चार- पासवर्ण परिवे, परि वा साइज । जे भिक्खु उज्जाति वा उज्जाणगिर्हसि था, उज्जानसालंसि वा निज्जासि वा निज्जाजगिर्हसि वा निज्जाण सालसि या उच्चार पासवणं परिवेद, परितं वा 3 साइज्जइ । जे भिक्खू अट्टसिया, अट्टात्यंसि वा चरियंसि वा पागारंसि वा दारंसि या, गोपुरंसि वा उच्चार पासवणं परिट्ट ये परिवेत या साइज्जइ । भवानी या गाव का उच्चार पासव परिवेद परिका साइज्जइ । भक्तासिया मित्रा निसासि वा कूडागारंसि वा. कोदुगारंसि वा उच्चारपरि परि वा साइन 7 जे भिक्खू तहिंसि वा तणसालंसि वा तुसगिहंस वा समालंसि वा, मुसहिसि वा भुससालसि वा उच्चार परवणं परिद्ववेद, परितं वा साइज्जइ । पसर परिसा परि था, परियासिया, कुवियसालंसि वा कुवियहिंसिया उच्चार पासवणं परिवेड परिटुतं वा साइज । बा गोहित वा महाकुल वा महाहिंसिया उपचारावणं परिवेड परि का साइज्जद । माउस्या परिहार उ - नि.उ.१५, सु. ६६-७४ जे भिक्स् अनंत रहियाए पुढबीए उच्चार पासवगं परिष्टुवेद, परितं या साइज्जद । [७२० उसे मासिकात परिहारस्थान (आमश्चित्त) आता है। जो भिक्षु छोटी-सी स्थण्डिल भूमि में उच्कार प्रलवण पर ठता है, परवरता है या परखने वाले का अनुमोदन करता है। उद्घाटन (प्राय) जाता है। भरा जायसवा सासि वा उच्चारावणं परिवैद पति का वाहन गृह में साइज्जइ । को भिक्षु धर्मशालाओं में उद्यानों में गाथापति दों में या आश्रमों में मल-मूत्र का परित्याग करता है, करवाता है या करने वाले का अनुमोदन करता है । जो भिक्षु उद्यान में, उद्यान ग्रह में उद्यानशाला में नगर के बाहर बने हुए स्थान में, नगर के बाहर बने हुए घर में, नगर के बाहर बनी हुई शाला में मल-मूत्र का परित्याग करता है, करवाता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। जो भिक्षु चबूतरे पर अट्टालिका में, चरिका में, प्राकार पर, करता है, करवाता है द्वार में, गोपुर में, मल-मूत्र का परित्याग या करने वाले का अनुमोदन करता है । जो भिक्षु जल मार्ग में, जल पथ में, जलाशय के तौर पर, जल स्थान पर, मल-मूत्र का परित्याग करता है, करवाता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। 7 1 जो भिक्षु शून्य गृह में शून्य शाला में टूटे घर में, दूकी शाला में, कूटागार में कोष्ठागार में मल-मूत्र का परित्याग करता है. करवाता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। जो भिक्षु तृण गृह में तृणशाला में, तुम गृह में, सशाला में, भुस (छिलके) गृह में, भुजशाला में मल-मूत्र का परित्याग करता है, करवाता है या करने वाले का अनुमोदन करता है । जो भिक्षु यान शाला में, यान गृह में वाहन शाशा में, करता है. करवाता है वा शिवा करने वाले का अनुमोदन करता है । जो में परिव्राजक गृह में, परित्याग करता है, करता है । में, विक्रय गृह में परित्राजा कर्मशाला में, कर्म गृह में मल-मूत्र का करवाता है या करने वाले का अनुमोदन 2 निगाला में, बैलगृह में महाकृत में महा भें महागृह मल-मूत्र का परित्याग करता है, करवाता है या करने वाले का अनुमोदन करता है। उसे चातुर्मासिक उद्घातिक परिहारस्थान ( प्रायश्वित) आदा है । जो पृथ्वी के निकट की भूमि पर मल-मूत्र का परित्याग करता है, करवाता है या करने वाले का अनुमोदन करता है ।

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