Book Title: Charananuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 760
________________ ७२८] चरणानुयोग अन्यतीयिकावि के साथ न्यडिल जाने का प्रायश्चित सत्र सत्र ३०५.३०७ जे भिक्खू ससिणिवाए पुढवीए उच्चार-पासषण परिवेइ, जो भिक्षु सस्निग्ध पृथ्वी पर उच्चार-पत्रषण परठता है, परिवेत वा साइज्जइ । परठवाता है या परठने वाले का अनुमोदन करता है। जे मिक्सू ससरक्खाए पुढवीए उच्चार-पासवर्ग परिदृवेइ. जो भिक्षु सचित्त रज युक्त पृथ्वी पर उच्चार-प्रसवण परठता परिट्टतं वा साइज्जई। है, परठवाता है, या परठने वाले का अनुमोदन करता है। मे भिक्खू मट्टियाकडाए पुढयोए उच्चार-पासवणं परिदुबेई, जो भिक्षु सचित्त मिट्टी बिखरी हुई पृथ्वी पर उच्चारपरितुवेंतं या साइज्जद। प्रस्रवण परलता है, परठवाता है या परठने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिषलू वित्तमंताए पुद्रवीए उच्चार-पासवणं परिदृवेद, जो भिक्ष नचित्त पृथ्वी पर उच्चार-प्रस्रवण पटता है, परिट्रयेंतं वा साइज्जड़। परवाता है या गरठने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू वित्तमंताए सिलाए उच्चार-पासवर्ष परिवेद, जो भित सचित्त थिला पर उच्चार-प्रस्रवण परठता है, परित वा साइजइ। परटवाता है या परटने वाले का अनुमोबन करता है । जे भिक्षू चित्तमंताए लेलुए उच्चार-पासवर्ण परिटुवेइ, जो भिक्ष चित्त शिलाखण्ड आदि पर उच्चार-प्रस्रवण परिटुवेंतं वा साइजह। परटता है, परवाता है या परठने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू कोलाषासंसि वा वारुए जीवपट्ठिए, सअंडे जाव. जो भिक्ष, दीमक लगे जीव युक्त काष्ठ पर तथा अण्डे मक्कडा-संताणए, उच्चार-पासवर्ण परिदृचेइ, परिवेनं वा -पावत्-मकड़ी यो जालों से युक्त स्थान पर उच्चार-प्रस्रवण साइज। परठता है. परटवाता है या परठने वाले का अनुमोदन करता है। जे मिक्खू यूपसि वा. गिहेलुपंसि वा, उसुयालंसि बा, काम- ओ भिक्ष दुर्बद्ध, दुनिक्षिप्त, अनिएकम्प या चरमाचल, ठूठ जसंसि मा, दुबो दुनिखित्ते, अनिकपे चलाचले, उच्चार- पर, देहली पर, ओखली पर या स्नान पीट पर उच्चार-प्रस्रवण पासवणं परिवह, परिवेंतं वा साइज्जइ । पर ता है, परठबाता है या पग्लने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू कुलियंसि बा, भित्तिसि बस, सिलंति वा, ले लुंसि जो भिक्ष दुद्ध, दुनिक्षिप्त अनिष्यम्प पा चलाचल मिट्टी वा, अंतलिक्खजायंसि या बुब्बजे, दुनिखित्ते अणिकपे, चला- को दीवार पर, इंद्र आदि की भिन्नि पर, शिला पर या शिला चले उच्चार-पासवणं परिवेद, परिर्वतं वा साइज्जई। खण्ड-पत्थर आदि अन्तरिक्षजात स्थानों पर उचचार-प्रसव परटला है, परठवाता है या परठने वाले का अनुमोदन करता है। जे भिक्खू खधंसि वा, फसहंसि वा, मचंसि चा, मंबंसि वा, जो भिक्ष दुर्बद्ध, दुनिक्षित, अनिष्णम्प या बलाबल स्कन्ध, मालसि वा, पासायंसि चा, हम्मियतलंलि बा, अंजलिक्ख- टांड, मंत्र, मण्डए, माला, महल श हवेली के छत आदि अन्त. जायंसि वा, दुग्धवे. दुनिखित्ते, अनिकपे चलाचले उच्चार- रिक्षजात स्थानों पर उच्चार-प्रस्रवण परखता है, परवाता है पासवर्ण परिवंड, परिठ्ठवतं वा साइज्जइ । या परठने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवस्जद चाउम्मासि परिहारष्टठाणं उग्धाइयं। उसे चातुर्मासिक उपातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित) -नि, उ. १६, सु. ४१-२१ आता है। अण्णउत्थियाइ सजि थंडिल-गमण-पायच्छित्त सुतं- अन्यतीथिकादि के साथ स्थंडिल जाने का प्रायश्चित्त सुत्र३०६. जे भिक्खू अण्णउस्थिएणं वा मारथिएण वा परिहारिओ ३०६. जो भिक्ष, अन्य तीथिक या गहस्थ के साथ अथवा परि वा, अपरिहारिएण सति चहिया बिहार-भूमि विधार-भूमि वा हारिक साधु अपरिहारिक के साथ उपाश्रय से बाहर की स्वाणिक्खमा वा पविसई वा जिक्खमंतं वा पसितं वा घ्याय भूमि में या स्थण्डिल में प्रवेश करता है या निष्क्रमण साइज्जई। करता है, प्रवेश कराता है या निष्क्रमण कराता है, प्रदेण करने वाले का या निष्क्रमण करने गले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे मापन्जाइ मासियं परिहारहाणं उग्धाइयं । उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान प्रायश्चित्त) आता है। -नि, उ.२, सु. ४१ आउडे ठाणे उच्चाराइ परिट्टवणस्स पायच्छित्त सुतं-- आवृत स्थान में मल-मूत्र परटने जाने का प्रायश्चित्त सूत्र - ३०७. जे भिषामू दिया वा राओ वा वियाले वा उच्चार-पासवणे ३०७. जो भिक्ष दिन में, रात में या विकाल (संध्या में) मल

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