Book Title: Charananuyoga Part 1
Author(s): Kanhaiyalal Maharaj
Publisher: Agam Anuyog Prakashan

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Page 745
________________ सूत्र २७७-२७८ माहरण मात्र महाविद्या सान्निर : रादान-निक्षेप समिति [७१३ से भिक्स्यू वा मिक्खूणी वा गामा पुगाम दूबजमाणे सर्व भिक्षु मा भिक्षुणी ग्रामानुग्राम विहार करते समय भी सर्व मंङगमायाए गामाणुगाम दूइज्जेजा। भण्डोपकरण लेकर ही जाये और आवे। से भिक्छ वा भिक्खूणी वा अह पूण एवं जाणे ज्जा भिक्षु या भिक्षुणो यदि यह जाने कितिव्वदेसियं वा पास वासमाणं पेहाए, अल्प या अधिक वर्षा बरस रही है, तिव्ववेसिव या महियं सग्णिवयमाणि पेहाए, अल्प या अधिक धुंअर गिर रही है, महावाएण वा रयं समुदयं पेहाए, महाबायु से रज गिर रही है, तिरिच्छ-संपाइमा वा तसा-पाणा संथा सस्त्रिययमाणा पेहाए, तिरछे उड़ने वाले वस त्राणी अत्यधिक गिर रहे हैं तो सर्व से एवं गच्चा णो सम्व भंडगमायाए गाहावाह-कुलं पिडवाय- भण्डोपकरण लेकर भी गृहस्थ के घर में आहार के लिए न जाये पडियाए णिक्त मेज्ज वा पविसेज्ज वा। और न आवे । बहिया बिहार-भूमि वा वियार-भूमि वा णिक्लमेज वा इसी प्रकार उपाश्रय से बाहर को स्वाध्याय भूमि में या पविसेज वा, मलोत्सर्ग भूमि में भी न जावे और न आवे । गामाषुगाम वा दूइज्जेज्जा। इसी प्रकार ग्रामानुग्राम बिहार भी न करे । - आचा. सु. २, अ. १, उ. ३, सु. ३४४ उवगरण अवग्गह-गण विहाणं उपकरण अवग्रह-ग्रहण विधान२७८. हि वि सखि संपवइए तेसिपि या', २७८. जिन साधुओं के साथ या जिनके पास बह प्रमजित हा है, विचरण कर रह है या रह रहा है, उनके भी(१) छत्तयं वा', (२) मत्तय वा, १. छत्रक, २. मात्रक (तीन प्रकार के भाजन) (३) बंडगं वा, (४लट्टि था, ३. दण्ड (बाहुप्रमाण) ४. लाझी (शरीर प्रमाण) (५) मिसियं वा ५. भृषिका-काष्ट का भासन, (६) णालियं वा, ६. नालिका (शरीर प्रमाण से चार अंगुल अधिक लाठी) (७) वेलं वा, ७. वस्त्र, (८) चिलिमिलि वा, ८. चिलिमिलिका (यवनिका, पर्दा या मच्छरदानी) (8) चम्मयं घा, ६. चर्म, (१०) चम्म-कोसयं वा. १०. चर्मकोश, (अंगुली आदि में पहनने का साधन)। (११) चम्मच्छणय वा, ११ चर्म-छेदनक (चर्म काटने का रास्त्र, तेसि पुवामेव उपगहं अणणुण्णवेत्ता अपडिलेहिय अपमस्जिय आदि उपकरणों को पहले उनसे अवग्रह अनुज्ञा लिए बिना तथा गो गिम्हेज्ज वा पगिण्हेज्ज वा, प्रतिलेख्न प्रमार्जन किये बिना एक या अनेक बार ग्रहण न करे। (क) इसी प्रकार वस्षणा तथा पारेषणा में भी ऐसे सूत्र हैं--अन्तर केवल इतना ही है कि वस्त्रषणा में (आ. सु. २, अ. ५, उ. २, सु. ५८२) “सब्वभंडगमायाए" के स्थान में "सन्चचीवरमायाए" है और रात्रषणा में (आ. सु. २, म. ६, उ. २, सु. ६०५) "सब्दपडिग्गहमायाए" है। शेष सब समान है। (स) न चरेज वासे वासंते, महियाए व पडतोए । महावार व वायंते, तिरिच्छ संपाहमेमु वा॥ -देस. अ... उ. १, गा. ८ इस गाथा' में भी सूत्रोक्त चारों प्रसंगों में गोचर जाने का निषेध है। सूत्रोक्त चारों प्रसंगों में पद्यपि बाहर की स्वाध्याय भूमि में तथा उच्चार प्रसत्रग भूमि में जाने का निषेध है, किन्तु उपाश्रय में स्वाध्याय करने का और उपाश्रय के समीप की उच्चार प्रस्रवण भूमि में उच्चारादि के परिष्ठापन का निषेध नहीं है तथा महिया व रजघात में स्वाध्याय करना सर्वथा वजित है। २ प्रस्तुत सुत्रपाठ में छाता (छत्रक) चमच्छेदना आदि उपकरण का उल्लेख है। जबकि दशवकालिक सूत्र में "छत्तस्स धारणाएं" कहकर इसे अनाचीणं में बताया गया है । इस विषय में आचाराग वृतिकार एवं चूर्णिकार समाधान इस प्रकार करते हैं कि किसी देश विशेष में वर्षा के समय कारणवश साप्प छत्र रख सकता है। कोंकण आदि देश में अत्यन्त वृष्टि होने के कारण ऐसा सम्भन हो सकता है।

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