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परगानुयोगे
प्रतिलेखना में प्रमत्त पाप-बमण
सूत्र २०५-२७
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(६) पाणीपागविसोहणी ।
छब्बिहा पमायपडिलेहणा पण्णसा तंजहा
(१) आरमडा,
६. पाणिप्राण विशोधनी-हाथ के ऊपर वस्त्र-गत जीब को लेकर प्रासुक स्थान पर परठना ।
प्रमाद--पूर्वक की गई प्रतिलेखना छह प्रकार की कही गई है। जैसे
१. अरमटा-सावल से दस्त्रादि को सम्यक् प्रकार से देखे बिना प्रतिलेखन करना।
२. सम्मळ -मर्दन करके प्रतिसेखना करना ।
३. मोसली-बस्त्र के ऊपरी, नीचले या तिरछे भाग का प्रतिलेखन करते हुए परसर पट्टन बरना ।
४. प्रस्फोटना-वस्त्र की धुलि को टकाते हुए प्रतिलेखन
(२) संमद्दा, (३) बम्जेयवा व मोसली ततिया.
(४) पप्फोडगा चउत्थी,
(५) विक्खित्ता,
५. विक्षिप्ता-प्रतिलेखित वस्त्रों को अप्रतिलेखित वस्त्रों
के ऊपर रखना। (E) वेइया छट्ठी।
६. वेदिका--प्रतिलेखना करते समय विधिवत् न बैठकर
-ठाणं. अ. ६, सु. ५०३ प्रतिलेखन करना । पडिलेहणा पमत्तो पावसमणो
प्रतिलेखना में प्रमत्त पाप श्रमण-- २८६. पडिलेहेड पमत्ते, अब उसइ पायकम्बल ।
२८६. जो असावधानी से प्रतिलेखन करता है जो पाद-कम्बल पडिलेहणाअणाउने, पायसमणि त्ति बुच्चई॥
(पैर पोंछने का गरम कपड़ा) को जहाँ कहीं रख देता है, जो
प्रतिलेखन में असावधान होता है, वह पाप-प्रमाण वलाता है। पडिलेहेइ पमत्ते, से किचि है निसामिया ।
जो कुछ भी बातचीत हो रही हो उसे सुनते हुए प्रतिलेखना गुरुपरिमावए निरवं, पावसमणि ति बच्चई ।। में असावधानी करता है तथा जो शिक्षा देने पर गुरु के सामने
-उत. अ. १७, गा. ६-१० बोलने लगता है, वह पाप-श्रमण कहलाता है। संथारं फलग, पीठं निसेज्जं पायकम्बल।
जो बिछोने, पाट पीठ, आसन और पैर पोंछने का गरम अप्पमज्जियमारूहा, पावसमणि त्ति वुन्छ । कपड़ा का प्रमार्जन किये बिना (तथा देखे बिना) उन पर बैठता
-उत्त. अ. १७, गा. ७ है, वह पाप-श्रमण कहलाता है। उहि अपहिले हणाल पायच्छित सुतं
उपाध अप्रतिलेखन का प्रायश्चित्त सूत्र २८७. जे मिक्खू इत्तरिय पि उहि न पहिलेहेड, न पडिलेहेंत वा २८७. जो भिक्ष अलग उपधि का भी प्रतिलेखन नहीं करता है, साइजा।
नहीं करवाता है और नही करने वाले का अनुमोदन करता है। तं सेवमाणे आवजा मासिब परिहारट्ठाणं उग्याइय। __उसे मासिक उद्घातिक परिहारस्थान (प्रायश्चित्त) आता है।
-नि. ३. २, सु. ५९
इस प्रतिलेखना में पूर्ण चद्दर का एक पाव भाग ६ भागों में और १८ खंडों में विभक्त किया गया है। इसी प्रकार पूर्ण गद्दर का दूसरा पार्श्व भाग भी ६ भागों में और १५ खंडों में विभक्त किया जाए और उसकी प्रति लेखनापी जाए, इस प्रकार एक रद्दर की प्रतिलेखना में चद्दर के बारह भाग (पुरिमा) और छत्तीस खंड (लोहा) लिये जाते हैं ।
सूत्र में चादर के एक पाश्र्व भाग की अपेक्षा से "छ पुरिमा' कहे गये तथा एक पार्श्व भाग के एक पट की (लम्बाई पांच हाय और चौड़ाई डेढ हाथ की अपेक्षा से "नय खोडा" कहे गये हैं। उत्त. अ.२६, गा. २५-२६ ।
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